मुस्कान में पराए भी अपने होते हैं
भावनानी के भाव
मुस्कान में पराए भी अपने होते हैं
अटके काम पल भर में पूरे होते हैं
सुखी काया की नींव होते हैं
मानवता का प्रतीक होते हैं
मुस्कान में हम सुखी ज़िन्दगी जीते हैं
प्रेम रस बहुयात में पीते हैं
दिलों में प्रेम भाव वात्सल्य सीते हैं
मानव से मानव की प्रेम कड़ी जोड़ते हैं
स्वभाव की यह सच्ची कमाई है
इस कला में अंधकारों में भी
भरपूर खुशहाली छाई है
मुस्कान में मिठास की परछाई है
मीठी जुबान का ऐसा कमाल है
कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता
मीठा बोलने वाले की
मिर्ची भी बिक जाती है
About author
कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट
किशन सनमुख़दास भावनानी
गोंदिया महाराष्ट्र