प्रतिकूल परिस्थितियों में भी लेखन पद्धति
आइये बैठिये समझिये, मैं वीना आडवाणी तन्वी नागपुर महाराष्ट्र से जिन परिस्थितियों में लेखन विद्या शुरू की, मेरे लेखन के विपरित विरोधी मेरे ही परिवार के सदस्य रहे, कुछ बाहर वाले भी आग में घी डालने का कार्य किये, और उस मंच पर आग में घी डाला जा रहा था जिस लेखन मंच पर सर्वप्रथम मेरे ही पतिदेव ने मेरी लेखन के प्रति रूचि देखकर जुड़वाया था। मुझे मेरे परिवार के सदस्यों में से वरिष्ठों ने ये कहा कि गुगल, या दूसरे संसाधनों कि मदद् से कोई भी रचना चुरा कर, या देखा देखी हुबहू लिखकर अपने आप को साहित्यकार बोल सकता है। मैं डगमगाई नहीं दुःख हुआ परंतु परिवार से छुटकर रात मे भी उठकर लिखने लगी और आज ये मुकाम पाया। जिसमें आज के समय में बहुत राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए मैडल ट्राफी भी। रही मंच की बात तो मुझे मंच पर ही एक विद्यार्थी की तरह चित्र देकर एक माह तक परीक्षा ली गयी की ये चित्र है और आप इसी पर रचनाओं का निर्माण करो। कभी चित्र खंण्हर , वीरानों, अंधेरों, फूलों, प्रेम, नृत्य आदि जिसको जैसा चित्र मिलता बस भेज देता की इस चित्र को देखकर पंक्तियां लिखों और आज मुझे ये फायदा है कि मैं किसी भी प्रकार का चित्र देखती हूं तो मेरे मन में चित्र के प्रति मेरी अभिव्यक्ति जल्दी आ जाती और मैं लिख बैठती। मैंने मात्र पंद्रह मिनट में जब जब चित्र दिये गये उस पर रचना लिख दी चित्रानुसार। एक माह बाद मंच के सदस्यों को मुझ पर यकीन हुआ। अफसोस सिर्फ इस बात का है कि मंच पर मेरे पतिदेव भी थे उन्होंने किसी का विरोध नहीं किया। शायद उनके अंतर्मन में भी यही प्रश्न रहा हो कि क्या सही में वीना में एक लेखिका के गुण हैं? कितनी बार मुझे टोका गया मेरा अपमान भी हुआ मैं रो कर मंच का भी त्याग कर देती थी। परंतु उस मंच के दो सम्मानित पदाधिकारी जिन्होंने मेरा मनोबल हमेशा बढ़ाया और मंच के सदस्यों का ही मिल पुरजोर विरोध किया यहां तक की उन्हें ललकार के कहा कि कोई वीना की तरह लिख कर दिखा दे। आज भी वो सम्मानित पदाधिकारी मुझे उत्साह वर्धन करते खैर आज मैं कवि सम्मेलन में भी जाती हूं। वर्ष २०२१ में एक प्रतियोगिता हुई थी जिसमें ४९९८० लोगों ने भाग लिया था देश भर से, और परिणाम स्वरूप मेरा चयन इसी प्रतियोगिता में हुआ जिसके लिए अगले माह मतलब अगस्त २०२३ में चयनित समस्त १११ साहित्यकारों को सम्मानित किया जाना है उसमें मेरा भी नाम है। वही पति जो खामोश थे मंच पर आज वो गौरवान्वित हैं। वही वरिष्ठ सदस्य परिवार के जो मेरी लेखन की काबिलियत पर सवालिया निशान लगाए मेरी लेखन विद्या को नापसन्द कर विरोध जताए थे। आज वो खुश हैं या नहीं ये तो मैं नहीं जानती परंतु हां अगर मैं दूसरों की पसंद का ध्यान रखती तो खुद की पसंद का हत्यारी मैं स्वयं होती। हर किसी की पसंद अपनी-अपनी है यही सही है कि हर किसी को अपनी पसंद अनुसार करने दें। जबरदस्ती घर में कलह का कारण बनती। परंतु मेरे परिवार में कलह नहीं हुआ कारण कि समझदारी इसी में थी खामोश रहो रातों कि नींद उड़ाओ और अपनी लेखन शैली की भूख, तड़प को काग़जो को लिख सुना कर शांत करो। यही किया मैंने भी ।
About author
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर , महाराष्ट्र
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com