पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं पर करेक्टर सर्टिफिकेट जल्दी लग जाता है

पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं पर करेक्टर सर्टिफिकेट जल्दी लग जाता है

पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं पर करेक्टर सर्टिफिकेट जल्दी लग जाता है

समाज कहता है कि पुरुष यानी तांबे का लोटा। वह चाहे जितना भी काला हो, पर उसे साफ कर के पानी के मटके के बगल में रख दो तो वह साफ दिखाई देने लगता है और मटके की शोभा बढ़ा देता है। पुरुषों के लिए ऐसा कहने वाले लोगों के पास स्त्री के लिए उसके करेक्टर के अनेक सर्टिफिकेट होते हैं। स्त्री ज्यादा बोलने वाली हो तो उसके लिए अलग सर्टिफिकेट, वह फ्रैंक हो तो उसके लिए अलग सर्टिफिकेट, वह रिजर्व हो तो भी उसके लिए अलग और प्रगति कर रही हो तो भी उसके लिए अलग सर्टिफिकेट। तमाम लोग सोचेंगे कि ऐसा नहीं होता। अब लोग स्त्री की बोल्डनेस को स्वीकार करने लगे हैं, पर सच पूछो तो यह मात्र सार्वजनिक रूप में है, पर पीठ पीछे हम स्त्रियों को अमुक प्रकार के करेक्टर सर्टिफिकेट देने में पीछे नहीं रहते। 

दरअसल, बात ऐसी है कि अगर कोई स्त्री सचमुच में बहुत होशियार होती है, उसे नौकरी में जल्दी प्रमोशन मिल जाता है तो उसी के आफिस में कुछ लोग यह कहने वाले निकल आते हैं कि 'बाॅस के नजदीक है अथवा बाॅस की लाडली है या बाॅस को बटर पालिश बहुत अच्छा कर लेती है, इसीलिए प्रमोशन मिला है, बाकी तो ठीक ही है।' 

स्त्री के लिए कोई आसानी से यह स्वीकार नहीं कर सकता कि उसे उसकी योग्यता या उसके काम की वजह से प्रमोशन मिला है। यहां दुख की बात यह है कि स्त्री की होशियारी या योग्यता को न स्वीकार करने के लिए मात्र पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी उतनी ही जिम्मेदार हैं। अरे, सोशल मीडिया पर जिनकी बहुत तारीफ होती है, ऐसी स्त्रियों के लिए भी अंदर ही अंदर अमुक सर्टिफिकेट हमारी सोसायटी दे देती है। दोधारी तलवार हर जगह चलती रहती है। कोई कैसा अच्छा यह देखने के बजाय वह अच्छा है तो उसके पीछे कुछ तो खराबी होगी ही इस तरह के ईर्ष्यालु लोगों को हम खुद ही तय कर लेते हैं।

यहां इक्वालिटी नहीं, समाज से डरना ही पड़ता है

हम इक्वालिटी की बात करते हैं, पर स्त्री के करेक्टर के मामले में तुरंत सर्टिफिकेट देने में इक्वालिटी की परवाह बिलकुल नहीं करते। यहां महिलाओं को कुछ भी करने के पहले एक तो यह सोचना ही पड़ता है कि लोग क्या कहेंगे। अलबत्त, ऐसी तमाम महिलाएं हैं, जो इस सब की परवाह नहीं करतीं। पर लोगों की टोंकाटाकी का असर तो सभी पर कुछ न कुछ होता ही है। अगर भूल से भी कुछ हो जाए तो डर तो लगता हक है कि सामने वाला व्यक्ति गलत तो न समझ ले। अगर कोई महिला मिलनसार हो, एकदम फ्रैंक हो और सभी से अच्छी तरह बातें करती हो तो तुरंत उसके बारे में बातें होने लगती हैं। पुरुषों को ऐसी महिलाओं से बातें करना अच्छा तो लगता है, पर पीठ पीछे उसके करेक्टर के बारे में कुछ कहने से हिचकते नहीं। दूसरी ओर अगर कोई पुरुष मिलनसार हो तो उसके इस स्वभाव को अच्छा कहा जाता है। पर अगर महिला मिलनसार हो और खास कर पुरुषों के साथ सरलता से तमाम बातें कर सकती हो तो उसका मूल्यांकन हमारा समाज जिस तरह पुरुष का मूल्यांकन करता है, उस तरह नहीं करेगा। तुरंत उस महिला के करेक्टर के बारे में बातें होने लगेंगी।

मित्रों के मामले में रूढ़िवादी विचार 

दूसरी सब से बड़ी बात यह है कि महिला जब किसी पुरुष से दोस्ती करती है या महिला के पुरुष दोस्त होते हैं तो लोग इस बात को गलत तरीके से देखते हैं। समाज में ऐसे अपवाद स्वरूप मामले हैं, पर हर जगह पुरुष दोस्तों के साथ महिला का अफेयर ही हो, यह जरूरी नहीं है। तमाम लोग बहुत अच्छे दोस्त होते हैं, जो एकदूसरे को छूट से सब कुछ शेयर कर सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं होता कि उन दोनों के बीच कोई अफेयर है। ऐसे तमाम मामले हैं, जिसमें महिला और पुरुष अपने परिवार की बातें, अपने जीवन की बातें, अपने निर्णय, बाल-बच्चों के बारे में, घर में कोई समस्या हो गई हो तो उसके बारे में एकदूसरे को शेयर करते हैं। दोनों के संबंधों में एक तरह की कंफर्टनेस होती है, जिससे एकदूसरे के साथ की शेयरिंग सरल होती है, पर इसका मतलब यह नहीं होता कि वे एकदूसरे के साथ किसी दूसरे संबंध से जुड़े हैं। दोस्त के रूप में किसी के लिए लगाव होना और किसी के लिए सचमुच प्यार होना, इन दोनों बहुत अंतर है। आप अपना मन हल्का करने के लिए किसी अच्छे व्यक्ति से अपनी बात शेयर करती हैं, जिसके साथ आप की प्योर दोस्ती हैं तो इसमें कुछ भी बुरा नहीं है। पर हमारा समाज यह समझता नहीं है और किसी महिला की किसी पुरुष से दोस्ती होती है तो तुरंत उसे अमुक तरह करेक्टर सर्टिफिकेट दे दिया जाता है। यहां मात्र समाज की ही बात नहीं हो रही है, कभी-कभी घर वाले भी ऐसा करते हैं। अलबत्त, लड़कियों को जहां समझाना हो, वहां समझाना चाहिए।

 स्वभाव के बारे में भी सर्टिफिकेट 

मात्र दोस्ती के बारे में ही नहीं, महिलाओं को उनके स्वभाव के बारे में भी बारबार अमुक तरह के सर्टिफिकेट दिए जाते हैं। कम बोलने वाली महिला को घमंडी कहा जाता है तो कभी-कभी लोग कम बोलने वाली महिला को बुद्धू में भी खपा देते हैं। इसी तरह ज्यादा बोलने वाली महिला पर बड़बोली का लेबल लगा दिया जाता है। अगर कोई महिला अधिक मिलनसार हो तो उसके करेक्टर को ले कर अमुक तरह का सर्टिफिकेट दे दिया जाता है। बात यह है कि अधिक बोलने वाली हैं या कम बोलने वाली, लोग महिलाओं पर आसानी से कोई न कोई लेवल लगा ही देते हैं। जबकि लड़कों के साथ ऐसा नहीं होता। लड़कों के बारे में ऐसी टीका-टिप्पणी जल्दी नहीं होती। यहां दुख की दूसरी बात यह है कि महिलाओं को सर्टिफिकेट देने वाली या लेबल लगाने वाली ज्यादातर महिलाएं ही होती हैं। जिस तरह पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को जल्दी करेक्टर सर्टिफिकेट मिलता है, उसी तरह पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ही महिलाओं को अधिक सर्टिफिकेट देती हैं। हमारी मुश्किल यह है कि महिलाओं की सफलता, उनकी स्मार्टनेस को हम जल्दी पचा नहीं पातीं।

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Sneha Singh
स्नेहा सिंह
जेड-436ए, सेक्टर-12
नोएडा-201301 (उ.प्र.) 
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