मैं, मैं होकर भी, मैं ना रह गई
दर्द-ए चीख मेरी, मेरे ही भीतर तोड़ मुझे घुटके रह गईनकाब हंसी का, चेहरे पर लगाकर दर्द सब सह गई।।
कोई सुनने वाला नहीं ये दर्द-ए चीख वादियों मे मेरी
अपनी दर्द-ए चीख दिल के वीराने मे दबाकर रह गई।।
तंहाई इतनी जिंदगी में की दर्द ही बना सहारा मेरा
मैं दर्द से मिला कलम का सहारा, दर्द सब लिख कह गई।।
छुपाए अपने ही, दर्द से मैंने जब कभी अपने आंसूं
रोक ना पाई आंसू, इन आंसूओं के सैलाब मे मैं ढ़ह गई।।
सहारे जिसके, उसी ने तोड़ा टुकड़ो मे इस कदर मुझे
।।मैं, मैं होकर भी, मैं ना रह गई।।
हां एक दर्द-ए शायरा वीना बनी, वो वीना कहीं खो गई।।
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वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर , महाराष्ट्र
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