स्क्रीन टाइम v/s स्लीप टाइम
August 30, 2023 ・0 comments ・Topic: Health lekh sneha Singh
स्क्रीन टाइम v/s स्लीप टाइम
आप दिन में कितने घंटे स्क्रीन के सामने होती हैं? अपने रेग्युलर काम से थोड़ी देर के लिए जैसे ही खाली होती हैं तुरंत हाथ में मोबाइल ले लेती हैं? स्क्रीन टाइम में केवल मोबाइल की ही गिनती नहीं करनी है, आप आफिस में कितने घंटे कंप्यूटर या लैपटॉप पर काम करती हैं? घर आ कर कितनी देर टीवी देखती हैं। आज ओटीटी प्लेटफार्म पर वेबसिरीज की लोगों की आदत पड़ गई है। पूरा का पूरा सीजन एक बैठक में खत्म कर देने वालों की भी कमी नहीं है। क्या आप भी ऐसा करती हैं? वीकएंड में तो पूरी की पूरी रात वेबसिरीज देखी जाती हैं। ओवरआल, पूरे दिन में हमारी आंखें किसी न किसी स्क्रीन के सामने रहती हैं? अभी जल्दी एक सर्वे आया है, जिसमें कहा गया है कि मनुष्य का स्क्रीन टाइम लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से स्लीप टाइम घट रहा है। एक समय था, जब बारह बजे सोना बहुत देर माना जाता था। बारह बजे तक जागते रहने पर मां-बाप या बुजुर्ग कहते थे कि क्या आधी रात तक जागती रहती हो? अब बारह बजे तक जागना जैसे काॅमन हो गया है। अब तो ऐसा लगता है कि जैसे सोने का समय ही 12 बजे का हो गया है। ऐसा कहने वाली तमाम लोग मिल जाएंगी कि किसी से कहो कि नौ-दस बजे सो जाती हूं तो उसे हैरानी होती है। लोगों की लाइफस्टाइल ही ऐसी हो गई है कि उन्हें जल्दी सोना हो तो नींद ही नहीं आती। बाॅडी क्लाक ही ऐसा सेट हो गया है कि बारह बजने के बाद ही नींद आती है।क्या कहते हैं डाक्टर और साइकोलाॅजिस्ट
मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए डॉक्टर और साइकोलाॅजिस्ट लोगों को स्क्रीन टाइम घटाने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि स्क्रीन टाइम पर नजर रखें। अधिक समय देंगे तो समय तो खराब होगा ही, साथ ही साथ हेल्थ इश्यू भी खड़ा होगा। सेंटर फार द स्टडी आफ डेवलपिंग सोसायटी द्वारा अभी देश के 18 राज्यों में 15 से 34 साल के उम्र के 9316 युवाओं और युवतियों पर एक सर्वे किया गया था। इस सर्वे में 45 प्रतिशत युवकों और युवतियों ने कहा था कि उनका स्क्रीन टाइम बढ़ा है।सोशल मीडिया पर रहते हैं ऐक्टिव
ह्वाट्सएप, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक और ट्विटर पर लोग सब से अधिक ऐक्टिव रहते हैं। इसी के साथ इन युवकों-युवतियों ने यह भी कहा था कि उनकी चिंता और भय में बढ़ावा हुआ है। दूसरे एक सर्वे में कहा गया है कि स्क्रीन टाइम बढ़ने की वजह से नींद कम हुई है। हमेशा कुछ न कुछ देखते रहने की वजह से आंखों को मेहनत पड़ती है। रात में बिस्तर पर लेटने पर भी तुरंत नींद नहीं आती। सोने से पहले अंतिम समय में भी लोग मोबाइल देख लेते हैं। रात में आंख खुलती है तो भी लोग मोबाइल चेक कर लेते हैं। सुबह उठने के साथ ही लोग पहला काम मोबाइल देखने का करते हैं। मजे की बात तो यह है की ज्यादातर लोगों को मोबाइल के पीछे समय बरबाद करने का अफसोस भी होता है।मां-बाप से सीखते हैं बच्चे
बच्चे भी अब हाथ में मोबाइल लिए बैठे रहते हैं। बच्चों का स्क्रीन टाइम कभी चेक किया है? जो पैरेंट्स अपनी संतानों को जितनी देर उनकी इच्छा हो, उतनी देर मोबाइल उपयोग के लिए देते हैं, मां-बाप को देख कर ही वे यह सब सीखते हैं। मां-बाप ही जब मोबाइल के एडिक्ट होंगे तो बच्चों से अच्छी आशा कैसे रखी जा सकती है। बच्चों की आंखों की समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं। इसके पीछे भी स्क्रीन टाइम ही जिम्मेदार है।नींद पूरी नहीं होगी तो पूरा दिन खराब होना ही है।
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