पुस्तक समीक्षा-उत्तर प्रदेश स्वतंत्रता संग्राम ललितपुर

पुस्तक समीक्षा-उत्तर प्रदेश स्वतंत्रता संग्राम ललितपुर

पुस्तक समीक्षा-उत्तर प्रदेश स्वतंत्रता संग्राम ललितपुर
ललितपुर के गुमनाम घटनाओं और इतिहास को विस्तार से सामने लाने का विशिष्ट प्रयास

"उत्तर प्रदेश स्वतंत्रता संग्राम ललितपुर " पुस्तक में हाशिए के बाहर कर जिसे बिसरा दिया गया था उस अलिखित इतिहास को पुन: सजोने का प्रयास है। जीवन, उद्भव, विकास और सामाजिक स्थितियों को लिपिबद्ध करने का गम्भीर प्रयास हुआ वह थोड़ा बहुत ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश शासन से पूर्व कभी नहीं हुआ था। उन लोगों के भी अपने कारण थे, निहित स्वार्थ थे। वे लोग सर्व समाज के तत्कालीन जागीरदारों के सरोकारों की बात के स्थान पर हमारे मन में एक ऐसी छवि बनाते है, वह आपराधिक, शोषणकर्ता और खूंखार निर्दयी, अल्पज्ञानी लोगों की होती है, पर उनकी इस मानव निर्मित छवि को समझने के लिए क्या कभी आपने उन्हें जानने का कोई छोटा-सा भी प्रयास किया है? ब्रिटिश शासन से विद्रोह कर लोहे के चने चबाने को मजबूर करने वाले अमर शहीद मधुकर शाह का नाम बीस वर्ष पूर्व तक उनके वंशज तक नहीं लेते थे! इस विडम्बना उन लोगों के दैनंदिन जीवन की परतों को अलग कर विभिन्न आयामों, व्यथाओं उनकी जिजीविषा को लिपिबद्ध रोमांचित करता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अमृत वर्ष के अवसर अनूठी पहल पर ललितपुर के गुमनाम घटनाओं और इतिहास को विस्तार से सामने लाने का विशिष्ट प्रयास सुप्रसिद्ध पत्रकार संपादक सुरेन्द्र अग्निहोत्री विद्वता के साथ पाठकों की रुचि और जानकारी को समृद्ध करने के लिए किया है। यह दावा किया जा सकता है इस कृति में भाषा-बोली, संस्कृति, रीति-रिवाजों और इतिहास एवं घटनाओं पर लेखकीय दृष्टि बहुत गहनता से पड़ी है। इन सब को बेहतर रूप से गूंथ कर जिस प्रकार आठ भागों में कथावस्तु का शाश्वत अंग बनाया गया है, वह लेखकीय विद्वता को रेखांकित करता है। विशेष बात यह है कि लेखक ने इस कृति के माध्यम से स्थितियों का जो जीवंत वर्णन किया है, जो शैली अपनाई है, यह उसी का कमाल कहा जा सकता है कि पाठक के सामने चाक्षुक सुख पूरी शिद्दत से मौजूद है। भाषा मुहावरेदार है और प्रभावित करती है।इतिहास की जानकारीयों का प्रयोग पुस्तक के लगभग हर पृष्ठ पर हुआ है परंतु इससे पाठकीय रुचि में जो परिवर्तन होता है वह सकारात्मक है, वह उसे पढ़कर विस्मित नहीं होने देता है।देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के साढ़े सात दशकों बाद भी विपरीत परिस्थितियों में विकास के लिए जूझते बुन्देली समाज को मुख्यधारा में अगर वह स्थान जिसका वह हकदार है मिले। ब्रिटिश शासन का काला कालखंड असंवेदनशील प्रशासनिक मशीनरीकी कलई खोलती है।
इस कृति की एक विशेष बात यह लगी कि लेखक ने जहां 1840-42 से शुरू हुए सुराज के आजादी आन्दोलन में सभी जातियों के योगदान को खोजकर लिखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, वहीं तत्कालीन काल के विशिष्ट और समृद्ध समाज की गतिविधियों को भी भली-भांति प्रस्तुत करने में सफलता पाई है। लेखक ने ऐसे दृश्य उत्पन्न किए हैं जो उनके लेखन को और भी दृढ़ता देते हैं।

पुस्तक का यह अंश महत्वपूर्ण है- महमूद गजनवी 1023 में ललितपुर के मार्ग से कांलिजर युद्ध करने गया। विद्याधर ने राजनैतिक कौशल के बल पर महमूद गजनवी को समझौता के लिए विवश कर दिया। महमूद गजनवी युद्ध लड़े बिना लूटपाट करता हुआ वापिस लौट रहा था, मध्यकाल में तब मुगल छोटे-छोटे राजाओं के आपसी संघर्ष का लाभ लेकर अपना राज्य कायम करने की ओर अग्रसर हो रहे थे। ऐसे ही समय देश के अन्तरदेशीय व्यापार के कुछ बिखरे सूत्र संयोग से नागा गुसाई साधुओं के हाथ आ गये।“ नागा गुसाइयों ने विधर्मी आक्रान्ताओं द्वारा धर्म स्थानों को अपवित्र करने तथा मूर्तियों को खंडित करने के कारण धर्म रक्षा हेतु अनेक युद्ध लड़े और ललितपुर में सिरसी में गढ़ी (मठ) स्थापित कर छोटी जागीरदारी तक स्थापित की थी। नागा गुसाई ऐसे ही योद्धा साधुओं के एक वर्ग से ललितपुर के गिन्नोट बाग के पास पड़ाव डाले महमूद गजनवी का संघर्ष हुआ था। गुसाई मुख्य रूप से शैव थे। वे अपने मृतकों की भूमि में समाधि के ऊपर वृक्ष लगा देते थे, कुछ स्थानों पर शिव मंदिर बनाने के भी प्रमाण मिलते हैं। गिन्नोट बाग में पांच वृक्षों की मौजूदगी इस काल खण्ड की घटना की पुष्टि करती है।
“उत्तर प्रदेश स्वतंत्रता संगाम ललितपुर “ पुस्तक हालांकि यह कोई शोध प्रबंध नहीं है। परंतु अपने पर्याप्त विस्तार तथा दृष्टि के कारण उन लोगों के जीवन पर किए गए एक शोध से कम भी नहीं है।
“उत्तर प्रदेश स्वतंत्रता संगाम ललितपुर “ पुस्तक की कथावस्तु के साथ ही भाषा और प्रस्तुतिकरण की सुगठता के बल पर पाठकों के मन में अपनी छाप छोड़ती है। अगर लेखक को एक बेहतरीन शब्द-शिल्पी कहा जाए तो अनुचित न होगा। आठ अध्याय में प्रस्तुत यह
“उत्तर प्रदेश स्वतंत्रता संगाम ललितपुर “ पुस्तक एक अंतराल के बाद भी इसे पढ़ने में निरन्तरता टूटने का आभास नहीं होता है। लेखक आंचलिक बोली बुन्देली के शब्दों से पाठकों को एक जीवंत इतिहास की याद दिलाते है।बुन्देलों की ठसक और आन वान शान को जीवंतता से लिखा है।
लेखक सुरेन्द्र अग्निहोत्री किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। बुन्देलखंड गौरव तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के सरस्वती पुरस्कार से सम्मानित अग्निहोत्री जी के लेखन पर अन्य कई राष्ट्रीय/राज्य स्तरीय पुरस्कार मिल चुके हैं। वह पत्रकारिता कहानी, लघुकथा, नाटक, और आलोचना विधा में एक अच्छी पहचान रखते हैं। उनकी रचनाओं के अंग्रेजी, मराठी, उड़िया भाषा में अनुवाद हुए हैं।

"उत्तर प्रदेश स्वतंत्रता संग्राम ललितपुर " पुस्तक के अंत मे आठ पृष्ठ रंगीन है जिसमें 24 महत्वपूर्ण चित्र और पत्र है। प्रस्तुतिकरण और मुद्रण स्तरीय है।

पुस्तक: “उत्तर प्रदेश स्वतंत्रता संग्राम ललितपुर “
लेखक: सुरेन्द्र अग्निहोत्री
प्रकाशक: नयी किताब प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य:550
पृष्ठ संख्या: 160
समीक्षा :सम्पत्ति कुमार मिश्र
ए-801, ओ.सी.आर.
बिधान सभा मार्ग;लखनऊ.226001
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