कवि पृथ्वी सिंह बैनीवाल के काव्य मे पर्यावरण चेतना

कवि पृथ्वी सिंह बैनीवाल के काव्य मे पर्यावरण चेतना
- डॉक्टर नरेश सिहाग एडवोकेट
अध्यक्ष एवं शोध निर्देशक, हिंदी विभाग, टांटिया विश्वविद्यालय, श्रीगंगानगर राजस्थान
कवि पृथ्वी सिंह बैनीवाल के काव्य मे पर्यावरण चेतना
बहुमुखी प्रतिभा के धनी हिसार हरियाणा के हिसार निवासी कवि पृथ्वी सिंह बैनीवाल आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। अपनी युवा अवस्था से ही साहित्य सर्जन कर रहे पृथ्वीसिंह समकालीन हिंदी कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनकी 10 से अधिक पुस्तकें और लगभग 15 सांझा संग्रह प्रकाशित हो चुके है। देशभर के अनेक समाचार पत्र- पत्रिकाओं में इनकी अनेकों विषयों पर रचनाएं समय-समय पर प्रकाशित होती रही है। लगभग 50 वर्षों से अपनी कविता यात्रा कर रहे पृथ्वी सिंह सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, साहित्यिक, पत्रकारिता, समाज सेवा, जनसचार, संगठन, पर्यावरण, जीवरक्षा और पौधारोपण आदि सभी विषयों पर अपनी कलम बखूबी चलाते आ रहे हैं।
सदगुरु श्री जम्भेश्वर जी महाराज द्वारा संस्थापित बिश्नोई पंथ के धर्म-नियमों की अनुपालना में स्त्री पुरुष विश्व के सर्वाधिक पर्यावरण प्रभावित है। आपके पंथ द्वारा पर्यावरण संरक्षण में दिया गया अद्वितीय सामूहिक खेजड़ली महाबलिदान विश्व प्रसिद्ध प्रसिद्ध है। जोधपुर रियासत के खेजड़ली गाँव में खेजड़ी (सम्मी) के वृक्षों की रक्षार्थ माँ अमृता देवी बिश्नोई की अगुवाई में उनके साथ 363 स्त्री, पुरुष, बच्चों (यहाँ तक नव विवाहित जोड़ों ने) ने वृक्षों की कटाई रोकने के लिए राजकारिंदो का अहिंसक विरोध करते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। पृथ्वी सिंह वृक्षारोपण करने और पर्यावरण की रक्षा करने बारे जनमानस को जागरूक करते हुए मां अमृता देवी का वर्णन अपनी एक कविता में करते हुए लिखते हैंः
वनस्पति री कदर करोला तो,
माँ अमृता बिश्नोई आ ज्यासी।
अणदो-ऊदो, किसनो, दामी,
चेलो-चीमां 363आ ज्यासी।।
भारतीय संस्कृति में पर्यावरण को प्रमुख स्थान दिया गया है और प्रकृति के पांच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश उसी से मानव शरीर का निर्माण हुआ है। मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक पर्यावरण से गहराई से जुड़ा हुआ रहता है। कवि बैनीवाल अपनी कविता 'इतिहास खेजड़ली का बताना भी जरूरी है' में लिखते हैंः-
"संस्कृति में वृक्ष म्हारै,
संस्कार बताना भी जरूरी है।
ना भूलें जीना जीने में,
सांस आना भी ज़रूरी है।।"
वर्तमान में क्षय रोग, कैंसर, चर्म रोग आँखे-आना, पीलिया आदि कई रोग मात्र पर्यावरण प्रदूषण के कारण ही फैल रहे हैं। इन बीमारियों से बचने हेतु और भविष्य में आने वाले पर्यावरण प्रदूषण के संकटों से बचने के लिए कवि बैनीवाल अपनी कविता खेजड़‌ली महाबलिदान में लिखते हैंः
"सिर के बदले गर वृक्ष बचेंगे,
सदगुरु नियमों पर कटै गळा।
दुष्टों को पग नहीं धरण दियो,
बिश्नोई बलिदानी दिन बिरला।।
कवि बैनीवाल अपनी कविता विश्व वृक्ष दिवस में लिखते हैंः-
"खुद पेड़ काटणा बंद करो,
वृक्ष तो खुद पनप ज्यासी।
बेटी अर वृक्ष पालोला तो कष्ट,
इस सृष्टि का कट ज्यासी।।
जे वृक्ष देव रा आदर करौला,
बीमार रा भाव बदल ज्यासी।।
जिस प्रकार से मनुष्य को जिन्दा रहने को भोजन की आवश्यकता है, उससे भी ज्यादा जरूरी जिन्दा रहने के लिए आक्सीजन है। मनुष्य बिना भोजन के दो-चार दिन जीवित रह सकता है, मगर आक्सीजन एक मिनट भी मुश्किल है। कवि बैनीवाल अपनी एक कविता में लिखते हैंः-
"रूंख राखणहार होय रेवोला,
आक्सीजन कमी हट ज्यासी।
जे मेहनत से वृक्ष लगाओ ला,
कष्ट प्रदूषण रो कट ज्यासी।।"
कवि बैनीवाल अपनी कविता वृक्ष मे लिखते हैः-
आक्सीजन चाहिए तो
वृक्ष लगाना भी जरूरी है
छाया हमें चाहिए तो
वृक्ष बचाना भी जरूरी है।



कवि बैनीवाल अपनी कविता 'वृक्ष महिमा' में बहुत सुन्दर रूप से वृक्ष की महिमा बताते हुए लिखते हैं,
पीपल नीम अर खेजड़ी,
वट वृक्ष भी होता खास।
आक्सीजन दे लकड़ी
छाया में कराबै निवास।।
कवि बैनीवाल पर्यावरण को शुद्ध रखने में पेड़ों की सर्वोच्च भूमिका मानते है। पेड़ हमारे जीवन दाता है। सभी पेड़ बिना किसी भेदभाव के सम्पूर्ण जीव जगत को प्राणवायु अर्थात आक्सीजन प्रदान करते है। पेड़ नामक अपनी कविता मे पेड़ को मनुष्य का सच्चा साथी बताते हुए श्री बिश्नोई लिखते हैः -
आक्सीवान और ताजी हवा,
वृक्ष जीवन की अचूक दवा।
शीतल छाया स्त्रोत वर्षा का,
जीवन हमारा वृक्ष हर्षाता।।
जीवन का सच्चा साथी पेड़,
मरूस्थल के अवरोधक पेड़।।


इसी तरह अपनी बाल कविता 'ज्ञान प्रकर्ति का हम पाएं' में कवि बैनीवाल लिखते हैं,
आक्सीजन देते वृक्ष न होते,
निज जीवन हम कैसे पाते।
जे वृक्षदेव की कृपा न होती,
फल मधुर हम कहाँ से पाते।।


पर्यावरण को प्रदूषित करके आज हम खुद के विनाश को निमंत्रण दे रहे है। बेहताश पेड़ों की कटाई से जंगल, खेत आदि पेड़ विहीन हो रहे हैं। पहले बहुत से लोग गर्मी आदि की छुट्टिया मनाने व शुद्ध हवा, पानी के लिए पर्वतों, जंगलों में जाया करते थे। पर अब पोलिथिन, पेड़ फराई आदि के कारण वहां का वातावरण भी हमारे शहरों जैसा हो गया है। कवि बैनीवाल निज कविता "धरा हरी बनाने को पेड़ लगाओ" में पर्यावरण बचाने और वन्य सम्पदा बचाने का आह्वान करते हुए लिखते हैंः-
पर्यावरण भक्ति री मूरत वीर,
नारे खेजड़ली रा लग ज्यासी।
मत वन्य सम्पदा बर्बाद करो,
देश नुकसांण से बच ज्यासी।


साथ ही जंगलों के काटे जाने और शहरों के बस जाने से वह दुःखी मन से उस आंगन कि बात भी करते हैं, जहाँ पर चहुँ ओर खुशहाली ओर हरियाली होती थी। कवि बैनीवाल अपनी रचना 'वो आंगन ढ़ूंढ़ रहा हूँ' में लिखते है,
आज फिर वो आंगन ढ़ूंढ रहा हूँ।
जहां आँगन के आगे वो बाखल है,
जहां कोने में रखे मूसल-औखल है।
जहां बाखल में पशुओं के ठांण है,
जहां बच्चों के खेलने का मैदान है।
जहां चारपाई पर बतलाते चाचा है,
जहां शान से बनाता कोई मांजा है।
आज फिर वो आंगन ढ़ूंढ रहा हूँ।।
पर्यावरण को प्रदुषित करने में पॉलिथीन का बहुत बड़ा योगदान है। यह सभी प्राणियों और नदी-नालों, पहाड़, जंगल आदि सभी के लिए घातक है। अतः प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग करना चाहिए और धरती को बाँझ होने से बचाना चाहिए। कवि बैनीवाल अपनी रचना 'पॉलीथिन से रहो दूर' में लिखते है,
"पुकार रही है हर आत्मा।
प्लास्टिक का हो खात्मा ।।
पॉलीथिन से सब रहें दूर।
सभी प्राणी जीये भरपूर।।"
आगे धरती को प्लास्टिक मुक्त करने के लिए जनमानस को प्रण लेने बारे भी कवि बैनीवाल लिखते हैं,
प्लास्टिक संग ना सांझ करो।
धरती माँ को मत बाँझ करो।।
मन में पक्का ये कर लो प्रण।
करो मुक्त प्लास्टिक से धरण।।
पृथ्वीसिंह की कविताओं से ना सिर्फ पाठकों को जागरूकता मिलती है, अपितु उनकी कविता समय समय पर लोगों को चेताते भी हैं। देखें,
अब भी समय है चेतो भाई,
रोक प्लास्टिक पर लगा भाई।।
पर्यावरण रक्षण करना होगा,
"पृथ्वी" प्लास्टिक को हटना होगा।।
पर्यावरण की सुरक्षा आज एक गम्भीर समस्या है और इसका समाधान बहुत जरूरी है। पर्यावरण शुद्ध सुरक्षित रहेगा, तभी स्वस्थ और सुरक्षित रहेंगे।। तभी कवि बैनीवाल अपनी कविता खेजड़ली महाबलिदान में प्रर्यावरण रक्षा का संदेश देते लिखते हैंः-
वन्य सम्पदा, रक्षा है धर्म अपना,
बचावण खातिर डट्या सरे लो।
पाहल घूंट दिन्हीं जम्मगुरु जी,
राखे लाज आज कट्या सरे लो ।।

वृक्ष काटणिया थक ज्यासी
वनस्पति बचाणी शुरू करो !
ए वन माफियां सुधर ज्यासी,
थे बन रा संरक्षण शुरू करो।।
कवि बैनीवाल वृक्ष पर एक गज़ल में लिखते हैंः-
प्रदुषण से बचाव की खातिर,
बृक्षारोपण करना भी जरूरी है।
वृक्षों हेतु सब प्राणियों का,
समर्पण करना भी जरूरी है।
पृथ्वीसिंह वृक्ष करे तो संग,
मर जाना भी जरूरी है।
रखनी स्वच्छता तो स्नेह,
वृक्ष से करना भी जरूरी है।।
कवि बैनीवाल पेड़ नामक अपनी कविता में प्रार्थना पर्यावरण रक्षा लिखते हैंः-
पर्यावरण शुद्ध बनाने को,
नित नित पेड़ लगाता चला।
शुद्ध प्राणवायु नित पाने को,
नित-नित पेड़ लगाता चल।।
इस प्रकार हमने देखा कि कवि पृथ्वी सिंह बैनीवाल बिश्नोई जी की कविताओं में पर्यावरण चेतना के स्वर सुनाई पड़ते हैं और उनकी कविताओं में पर्यावरण नाना प्रकार से रूपायित हुआ है। पर्यावरण संरक्षण के लिए वह स्वयं भी अनेकों संस्थाओं से जुड़कर पिछले कई वर्षों से सराहनीय कार्य कर रहे हैं। साथ ही अपनी कविता के माध्यम से मनुष्य मात्र से अनुरोध भी करते आ रहे हैं और भविष्य मे होने वाले विनाश के बारे मे भी आगाह कर रहे हैं। सुखी एवं सुरक्षित जीवन के लिए हमें पर्यावरण संरक्षण अवश्य करना ही होगा।

डॉक्टर नरेश सिहाग एडवोकेट
पूरा पताः गुगन निवास 26 पटेल नगर भिवानी हरियाणा 127021

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