कविता - अश्रु | kavita - Ashru
कविता - अश्रु
क्यू तुम्हे नही ये बोध है,
कमजोर मत समझो तुम मुझे,
यह तुम पर आने वाले गुस्से का विरोध है।
कदर करो इन अश्रु की,
ये एक विकल्प है तुम्हे न तकलीफ मिले,
अगर भड़ास निकल गई जख्मों की,
तो तुम रह जाओगे हिले।
इंसान है हम शेतानो की तरह चिल्लाना हमारा संस्कार नहीं,
कोई बात बुरी लग जाए तो इंसानियत के नाते भुलाना है सही।
हमारे आसू एक बार बरदाश होजाएंगे तुम्हे,
खामोशी भी सहन हो जाएगी तुम्हे,
पर हमारे क्रोध की आहट तुम्हे डरा न दे,
तुम्हारा शैतानी स्वभाव को और बढ़ावा न दे।
समझदारी से जिए,
गुस्सा निकलने की जगह रिश्तों में थोड़े आसू ही निकले।।
अहंकार में क्या रखा है?
और इसके साथ तो रावण भी नही जी सका है।।