Kavita on navratri
नवरात्रि
सुनो दिकु.....नौ दिन नवरात्रि के
हमारे जीवन में आनंद लेकर आते है
ज़िंदगी को जुमकर कैसे जिया जाता है
गरबा और डांडिया के साथ हमें सिखाते है
जब भी मां अंबे का आगमन होता था
ऐसे नाचता, की सारे अपने सूद बुध खोता था
आज तुम होती तो तुम्हें साथ लेकर डांडिया खेलता
में जीवन की हर परिस्थिति को खुशी खुशी झेलता
खैर, अब रात को वह माहौल में ज़रूर जाता हूँ
मा अंबे से हररोज़ प्राथना करके लौट आता हूँ
"हे माँ, में फिर से पूरी खुशी के साथ झूम उठूंगा
माँ, मेरी दिकु को ला दो, में भी मन भर के आप के आंगन में गरबा खेलूंगा"
पूरे जहां में धूम मचा रहे है लोग रास पर
मेरी आँखें नम है तुम्हारे लौटने की आस पर
प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए