कविता –अभिलाषा| kavita -Abhilasha
March 24, 2024 ・0 comments ・Topic: kanchan chauhan poem
अभिलाषा
अपने ही नभ में उड़ना मुझको,अपना संसार बनाना है।
कोमल मन की अभिलाषा है,अंबर से ऊपर जाना है।कुरीतियों की बेड़ी पग में,मन फिर भी उड़ता है नभ में।
कोमल मन को झंझावात से,अब मुझे ही पार लगाना है।
जोखिम को अपने सिर ले,अब पहला कदम बढ़ाना है।
पहला कदम जब उठ जाता है,नयी डगर इक बनती है।
नयी डगर पर चल कर ही तो, मुझको मंजिल को पाना है।
कोमल मन की अभिलाषा है, अंबर से ऊपर जाना है।
संघर्षों से जीत कर मुझको,अपना संसार बनाना है।
–कंचन चौहान
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