आत्महत्या और आत्ममंथन | Aatmkatha aur aatmkatha

आत्महत्या और आत्ममंथन

आत्महत्या और आत्ममंथन | Aatmkatha aur aatmkatha
काश आत्महत्या करने के पहले आत्ममंथन करना सीख जाते लोग तो आत्महत्या करने का विचार नहीं आता । पर लोग इस बात को समझे तब ना ,दुनिया में नकारात्मकता इतनी बढ़ती जा रही है लोग अपनी खूबसूरत जिंदगी को खुद के हाथों तबाह कर बैठते हैं या कहा जाए तो खुद के हाथों खुद खत्म कर देते हैं । दिन पर दिन आत्महत्या जैसी घटनाएं बढ़ती जा रही है, इंसान अपनी जिंदगी में इतना थक चुका हैं कि उन्हें मौत को गले लगाना आसान लगता है। आखिर ऐसा क्यों? कब तक यह सब चलेगा ? अपनी जिंदगी की लड़ाई में हार मानकर कायरता, वाला काम कर बैठते हैं ,छोटी- बड़ी कोई भी परेशानी का हल आजकल लोग खुद को जान लेना निकालते हैं और स्वार्थी बनकर सिर्फ अपने को खत्म कर लेते हैं जरा भी दूसरे में नहीं सोचते कि वह तो चले गए उनकी जाने के बाद उनके अपने सगे संबंधी का क्या हाल होगा, या दूसरों को भी कही न कही यही करने को प्रेरित करते हैं क्योंकि इंसान की प्रवृत्ति है दूसरों का अनुसरण करना और गलत चीजों का जल्दी सीख लेते हैं।
माना कि तनाव, गुस्सा ,घुटन इत्यादि के वजह से ऐसा करने पर लोग विवश हो जाते हैं । जिंदगी में असफलता ,निराशा से मुक्त होने का यही रास्ता बिल्कुल गलत है । जब भी कोई इंसान अपनी जिंदगी में तकलीफ ,दुख -दर्द ,चिंता आदि से परेशान हो जाए तो समय उसे अपने बात को मन में रखने के बजाए दूसरे से साझा जरूर करनी चाहिए ऐसा करने से शायद उस समय परेशानी का हल निकल जाए , करीबी मित्र रिश्तेदार, सगे- संबंधी कोई भी इंसान जिससे आपको अपना मन का बात बोलने में बेझिझक ना हो बोलना चाहिए । पर आज के आधुनिकता के दौर में लोगों के पास बैठकर बातें साझा करने को समय नहीं होता है यह भी तो मानना पड़ेगा ।
आजकल लोग सभी सोशल मीडिया के दिखावटी दुनिया में व्यस्त पड़े हुए हैं हो भले ही वह अपने आप में अकेला ही क्यों न हो ।अपने मनोरंजन के लिए सही सोशल मीडिया पर व्यस्त है ,हर दूसरा शक्स सोशल मीडिया पर खुद को को सबसे हसीन खुशहाल दिखाने का प्रयास करता है । कभी कभी दूसरों को इस तरह देख और खुद को उस जगह ना होने का सोच भी लोगों को नकारात्मक चिंतन बढ़ाती हैं। जो आत्महत्या जैसी घटना का अंजाम देती है । पर वह ये नहीं सोचता उनका अस्तित्व खत्म कर देने से सब कुछ खत्म नहीं हो जाता है सब कुछ वैसा ही चलता है बस आपके जाने के बाद आपके लिए कोई भी दो-चार महीना या कुछ साल अफसोस करेगा उसके बाद कोई याद भी नहीं करता तो फिर क्यों कायरों का जैसा कदम उठा अपने को खत्म करना। आजकल युवा वर्ग ऐसा कदम उठाने में ज्यादा अग्रसर हो रहे हैं स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे हो या बेरोजगारी की मार सहने वाले एक परीक्षा में असफल हुए नहीं की समाज के डर कर खुद को खत्म कर लेते हैं । असल आज सफलता की परिभाषा बदल चुकी है सफलता लोगों के नजर में पैसा है पर सफल व्यक्ति वही होता है जो हर तरह से संतुष्ट होकर हर हाल में जीवन व्यतीत करना जानता हो ।
आजकल लोग आत्ममंथन कम करने लगे हैं कहने का अर्थ है आत्मविश्लेषण ।खुद के बारे में खुद का सोच-विचार कम करने लगे जबकि हमें आत्ममंथन जरूर करना चाहिए जिससे खुद के बारे गुण-दोष के बारे में जानकारी मालूम चलती है । जिससे अपने जीवन में आगे बढ़ने में सहायता मिलती है। आत्महत्या जैसा का ख्याल इंसान के जहन में जब भी आए उसे एक बार अपनी जिंदगी में नकारात्मकता, दुख -दर्द आदि को भूलकर शांत मन से अपने बारे में जरूर सोचना चाहिए उसे किस चीज की जरूरत है अपने छोटे-छोटे खुशियों के बारे में सोचना चाहिए उसे पहले उसे लम्हे को याद करना चाहिए जब वह बहुत ज्यादा खुश था और किस वजह से परेशान है, अपने को खत्म करने का सोच रहा है क्या उसे खत्म करने से हर समाधान का हल है । सही-गलत का विचार शांत मन से करना चाहिए और अपने पर विश्वास करना सीखना चाहिए जिंदगी को नए उत्साह के साथ जीने की चाह रखना चाहिए । खुद की छोटी-छोटी खुशी का के लिए काम करना शुरू करना चाहिए जो बात दुख -दर्द तकलीफ दे उसे त्याग देना चाहिए चाहे इंसान ही क्यों ना चाहे अपने सगे संबंधी क्यों ना हो या कोई भी समस्या जिससे परेशान हो उसे त्यागने सीखना चाहिए क्योंकि सूरज के डूबने के बाद उदय होना निश्चित होता है तो अपने जिंदगी का दीपक बुझाने जैसा ख्याल रखना ही नहीं चाहिए कोशिश करनी चाहिए उसे एक नया आयाम देने की अपने आप पर इतना भरोसा होना चाहिए की हर मुश्किल को जीत दिखाएं। अर्थात आत्महत्या जैसे ख्यालों पर रोक लगाने के लिए आत्ममंथन जरूरी है ।

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Mamta kushwaha
ममता कुशवाहा
मुजफ्फरपुर, बिहार
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