Kavita - जीवन सुगम बना दो | Jeevan sugam bana do
May 26, 2024 ・0 comments ・Topic: kanchan chauhan poem
जीवन सुगम बना दो
मैं कुदरत का प्यारा पंछी हूं,तुम सब के बीच मैं रहता हूं।
मेरी आंख के आंसू सूख गए,
अब तुम से शिकायत करता हूं।
लम्बी चौड़ी कोई बात नहीं,
मैं इतनी गुज़ारिश करता हूं।
बस इतनी अरदास मेरी तुमसे,
मेरा जीवन सुगम बना दो तुम।
कितनी मुश्किल मानव ने दी,
मुझे उन से छूट दिला दो तुम।
धरती है कितनी उबल रही,
पेड़ों की मुझ को छांव नहीं।
मैं भरी दुपहरी दर - दर भटकूं
दो बूंद पानी की आस लिए।
व्याकुल हूं मैं, भीषण गर्मी में,
अब नहीं ठिकाना मेरा कोई।
घर में जो जा़ली, झरोखे थे,
वो भी अब बीती बात हुए।
बारिश भी मुझसे छीनी गई,
तालाब अब स्विमिंग पूल हुए।
थोड़ा सा तरस करो मुझ पर,
कुछ सोचो अब मेरे बारे में।
तुम सब का प्यारा पंछी हूं,
ना पिंजरे में मुझको कैद करो।
थोड़ा पानी छत पर रख दो तुम,
अब थोड़ा सा मुझ पर रहम करो।
मैं अंबर में उड़ता पंछी हूं,
मेरा जीवन सुगम बना दो तुम।
कितनी मुश्किल मानव ने दी,
मुझे उन से मुक्त करा दो तुम।
पेड़ लगा कर इस धरती पर,
मुझे मेरा घर लौटा दो तुम।
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