मन से कभी न हारना | man se kabhi na harna
May 26, 2024 ・0 comments ・Topic: kanchan chauhan poem
मन से कभी न हारना
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत
मन से कभी नहीं हारना,सुन मेरे मन मीत।कभी कभी मन थक जाता है,
थक जाता है,भर जाता है।
उलझन में ये फंस जाता है।
निराशा के बादल घेरे मन को,
आशा का ना कोई ठोर दिखे।
उस वक्त भी मत घबराना तुम,
जब जीवन में घटा घनघोर दिखे।
जब दुःख के बादल जब घेरे हों
तब इतना तुम याद सदा रखना,
यह समय बदलता रहता है,
नहीं कभी ठहरता एक जगह,
समय ही हल हर उलझन का,
चाहे उलझन हो कितनी भारी।
सांसों का चलना ही है जीवन ,
है सांसों से ही ये दुनिया सारी,
मुश्किल के वक्त, मेरे मनमीत,
बस थोड़ा सा धीरज धर लेना,
इन सांसों को थामे रखना तुम,
चाहे उलझन हो कितनी भारी।
आशा की ज्योत जला लेना,
चाहे दुश्मन हो दुनिया सारी ,
मन की शक्ति पर होती निर्भर,
इस जीवन में शक्ति सारी।
मन में जो तुम ठान लो, तो जग सकते हो जीत।
तुम मन से कभी न हारना,ओ मेरे मनमीत।
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत।
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