berojgaari karan aur nivaran by cp gautam

 बेरोजगारी कारण और निवारण

बेरोजगारी

berojgaari karan aur nivaran by cp gautam


दिन प्रतिदिन बढ़ती जनसंख्या के अनुसार देखा जाए तो बेरोजगारी अपने चरम पर है।

देश के करोड़ों युवा साथी आज अलग-अलग विश्वविद्यालय कोचिंग संस्थानों से पढ़कर तैयारी में जुटे हुए हैं किंतु सरकार कुछ भी वैकेंसी निकालने को तैयार नहीं है। आज जो कुछ वैकेंसी  निकल भी रही हैं वह कोर्ट कचहरी के फेरे लगाते लगाते निरस्त हो जा रही हैं । देश में बेरोजगारी को लेकर देश के शिक्षित युवाओं  के मन में एक बेचैनी सी बनी हुई है कि आखिर हम लोगों ने इतना पढ़ लिख कर इतना पैसा खर्च कर कर क्या करूं , घर बैठने में भी ठीक नहीं है। गांव घर में लोग यही कहते हैं कि उनका लड़का विश्वविद्यालय में पढ़ाई किया है और आज घर पर बैठकर खेती में जुटा है। खेती का भी बुरा हाल है। वह भी आप लोगों से छुपा नहीं है देख सकते हैं , कि कितने किसान आर्थिक तंगी की वजह से कर्ज में डूबे होने के कारण से आत्महत्या कर रहे हैं। एक  मुझे लगता है कि एक समय ऐसा भी आएगा कि शिक्षित बेरोजगार युवाओं का  जब घर छूट जाएगा जब उनसे रहा नहीं जाएगा । समाज की प्रताड़ना सुनते सुनते समाज की ताना सुनते सुनते या घर में किसी भी लोग से उनकी बातें ना सह पाना, की पढ़ाई किए हैं और कुछ भी नहीं कर रहे हैं उलट इनका खर्चा इतना है। तो इन सारी चीजों से तंग आकर शिक्षित बेरोजगार युवा भी फांसी लगाने को मजबूर हो जाएंगे, लेकिन कोई फांसी लगाए या आत्महत्या करें सरकार को क्या फर्क पड़ता है? उनकी तो कुर्सी बनी रहे तो सब कुछ बनी है वह अरबों करोड़ों में खेलते है खेलें, बेरोजगार युवाओं को बहुत कुछ ज्यादा नहीं ,थोड़ा चाहिए BA, ma,   या बीएससी  किया हुआ है उसे 20 या 30 या  40,000 की नौकरी मिल जाए  तो वह उससे भी  खुश है। उससे वह अपना जीवन यापन कर लेगा लेकिन वैकेंसी खाली  होते हुए भी कोई वैकेंसी नहीं  निकाली जा रही हैं । हर जगह बेरोजगारी पर चर्चाएं हो रही हैं सरकारे  आ रही हैं सरकारें जा रही हैं ,लेकिन इस पर ठोस निर्णय नहीं लिया जा रहा है कि आखिर इस बेरोजगारी को कैसे दूर किया जाए क्या सिस्टम बनाया जा रहा कि  सरकारी संस्थानों को भी बेचा  जा रहा है ,प्राइवेट के हाथों में सरकारी चीजें ,प्राइवेट के हाथों में जाएंगी तो जो नौकरी 20 से 25000 वाली थी वह आ 8 से 10000 पर आ जाएगी ,और बेरोजगारी अपने चरम पर चली जायेगी। जिससे बुरा हाल होने वाला है और वर्तमान सरकार को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है ,फिलहाल हम यही कहेंगे कि शिक्षित बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने की पहल करें सरकारी वैकेंसीयों में जिन जिन पदों पर रिक्त स्थान हो उनको चेक कराया जाए वैकेंसी निकाली जाए और भर्तियां कराई जाए। इससे कुछ बेरोजगारी  दूर होंगी लेकिन सरकार को इसका भी ख्याल नहीं है ,इस कोरोना महामारी में भी लोग आर्थिक रूप से इतना टूट चुके हैं कि कोई सीमा नहीं है, और कुछ छुपाने की जरूरत नहीं है ।आप सबके सामने हैं महंगाई चरम पर है ,और  बेरोजगारी तो पूरा आसमान पर , सामान्य जनता खाने-पीने से लेकर पहनने ओढ़ने तक के लिए मोहताज है ।सारी चीजें उसको उपलब्ध नहीं है ,अच्छे दिन की आस में सभी के बुरे दिन आ गए हैं। क्या कहा जाए कुछ समझ में नहीं आता कि कब अपने देश का कुछ कल्याण होगा। कब हम किसी विकसित देश से सीखेंगे कब अपने आप को बदल लेंगे, दुनिया में घूम घूम कर चिल्लाते फिरते रहते हैं, कि मैं विश्व गुरु हूं जो भी नई टेक्नोलॉजी विदेशों में आती है हमारी भारत सरकार या कुछ पुराणों का उदाहरण देकर यह कहेंगी कि यह चीज हमारे यहां पहले ही शोध हो चुका था , जब हो चुका था तो विकसित क्यों नहीं किया ,क्या कर रहे थे ? अभी तक सो रहे थे ? दुनिया चांद पर गई तुम अभी भी क्या सोच रहे हो कहने से कुछ नहीं होता है , हमारे यहां पहले ही हो चुका था बशर्ते करने से होता है , उस टेक्नोलॉजी को विकसित करने से होता है लोगों तक पहुंचाने से  होता है। तब एक आम जनता जानेगी कि हां यह हमारे भारत में पहले ही विकसित हो चुका था । अभी विदेशी कंपनियां इसको अन्य रूप में बदल कर हमारे सामने पेश कर रही हैं । रह गई बेरोजगारी तो बेरोजगारी तो बहुत ही जटिल  प्रश्न है ,और जिस पर कितना भी बोला जाए मुझे लगता है कि बहुत कम ही है। बेरोजगारी को दूर कैसे किया जाए या इसका क्या कारण है सबसे पहले यह जानना बहुत जरूरी है।

बेरोजगारी के कारण

शिक्षित बेरोजगारी के कारण हमारे हिसाब से कई प्रकार के हो सकते हैं ,जैसे एक समूह वह भी है जो अपने आप को शिक्षित तो कहता है डिग्री तो उसके पास हाई क्वालिटी की होती है। लेकिन उसके पास  एक भी ज्ञान नहीं होता सिर्फ जातिवाद करने के अलावा,  वह सिर्फ पैसों के बलबूते डिग्री खरीद कर या पैसे के बलबूते घूस देकर नौकरी लेने के प्रयास में रहते हैं। यह तो एक  बेरोजगारी का  कारण है जिन्हें हम बेरोजगार तो नहीं कर सकते, हां जुगाड़ कह सकते हैं । ऐसे लोगों के लिए लिए बेरोजगारी कोई मतलब नहीं रखता। वह अपने दोनों जुगाड़ में रहते हैं नौकरी लग गई तो ठीक नहीं तो वह अपना बिजनेस कर लेंगे, और उससे अपना जीवन यापन कर लेंगे । दूसरा कारण जो वास्तव में शिक्षित और ज्ञान से परिपूर्ण तैयारी में   भरपूर जुटे हुए हैं ।सरकारी वैकेंसीयों का इंतजार कर रहे हैं ।उनका कोई जुगाड़ नहीं है, ना उनके पास पैसा है और अपने प्रतिभा के वजह से नौकरी लेने का प्रयास कर रहे हैं। उनके लिए विकट समस्या है, उनका कोई समाधान नहीं दिख रहा है। सरकार जैसे सो रही है ,जागने का नाम ही नहीं ले रही है ,सरकार तभी जागती है तभी सांसे लेती है जब  उसकी कुर्सी हिलने   लगती है। तब वह अच्छे दिन के नाम पर बड़े-बड़े जुमले फेंकने लगती है और एक विवश आदमी करे तो करे क्या ,जहां कुछ नहीं है एक डूबते को तिनके का सहारा ही काफी है। मजबूर होकर उसके बातों पर विश्वास करता है। लेकिन वहां पर भी उसको धोखा मिलता है और कहा जाता है की स्टेशनों पर बाजारों में ठेला लगाओ, दुकान लगाओ, पकौड़ी बेचों। अरे मेरे सरकार जब सारे बेरोजगार युवा यही करने लगेंगे तो प्राइमरी विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक सरकारी कार्यालयों से लेकर कोर्ट कचहरी तक तुम्हारे मंत्रालय से लेकर संसद भवन तक कौन जाएगा एक डीएम जिसको देश तो नहीं चलाना होता है सिर्फ एक  जिले का कार्यभार दिया जाता है कितनी कठिन परीक्षा ली जाती है ,और कितना मेहनत के बाद वह उस पद को पाता है।

मुझे तो लगता है नौकरी लेने में नहीं देने में फायदा है वोट देने में नहीं लेने में फायदा है। एक बार आप की सरकार बन गई आप पढ़े लिखे हैं कि नहीं है, मर्डर किए हैं गुंडा मवाली हैं ,उससे नहीं फर्क पड़ता अब आपको देश चलाना है राज्य चलाना है, आप पीएचडी धारको को  नौकरी देना उनका इंटरव्यू लेना है । हमारे देश के मंत्रालय में देखा जाए एक से बढ़कर   गुंडा मवाली भरे हुए हैं ,लेकिन उन पर कोई सवाल नहीं उठाएगा जब शिक्षा मंत्री ऐसे से नियुक्त किए जा रहे हैं जिनकी कुछ खास योग्यता नहीं है जो मात्र हाई स्कूल इंटर पढ़कर प्रोफेसरों की कुल पतियों की इंटरव्यू ले रही है। तो उस देश की शिक्षा व्यवस्था कहां जाएगी? और देश में बेरोजगारी कितना चरम पर जाएगी और उस देश की युवा कितना तरक्की करेंगे ?,क्या करेंगे ?कुछ समझ में नहीं आता ।

अपने देश में बेरोजगारी का एक कारण यह भी है कि शिक्षा व्यवस्था में कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जाता, ना अच्छे से शोध होता है , ना अच्छे से पढ़ाई तो अधिक से अधिक लोग डिग्री तो ले कर बैठे वह सब रोड पर यही चिल्लाते हैं कि हम बेरोजगार हैं । लेकिन  उन सब को अपने अंदर  झांक कर देखना चाहिए कि क्या मेरे अंदर इस पद के लिए योग्यता है? क्या मैं कर पाऊंगा? यही बात सरकार चला रहे मंत्रालय में जितने भी मंत्री गण बैठे हुए हैं ,उन सब को यह सोचना चाहिए कि क्या हम इन पदों पर बैठने योग्य हैं ?वह अपने शहर में अपने एरिया में कितना गुंडा बवाली रहे हैं? कितने मर्डर किए हैं? उनकी दहशत  ने  उनको मंत्री बना दिया । जनता  भय के कारण या  उनके भय के कारण उनको मंत्री बना दिया और वह आज बड़े  लेवल पर उनका बिजनेस चल रहा है। विदेशों में से लेकर पूरे भारत में लेकिन जिनके वजह से तरक्की की उन्हीं का ख्याल नहीं करते हैं। हम तो यही कहेंगे की बेरोजगार युवाओं को एकजुट होकर सरकार को यह दिखा देना चाहिए कि हम युवाओं में कितनी शक्ति है ।कितनी प्रतिभा है एक बार चुनाव के समय जब तक रोजगार नहीं तब तक वोट नहीं। पूरे देश में एक पहल हो जाए परिवर्तन निश्चित है । हर विभाग से वैकेंसी निकले उस पर भर्तियां हो, छह  महीने के अंदर सारी भर्तियां कंप्लीट हो उसके बाद चुनाव हो तब वोट दिया जाए, क्योंकि परिवर्तन के लिए कुछ नया करना होता कुछ नया करेंगे तभी परिवर्तन होगा जैसे प्रकृति है निरंतर  परिवर्तनशील है परिवर्तनशीलता के वजह से ही उसकी सुंदरता उसकी सौम्यता बनी हुई है। अपने आप को परिवर्तित करती रहती है कि हमें कहां कैसे किस प्रकार से रहना है रेतो  में नागफनी  है तो वहां पर कांटे भी उगे गए हैं सामान्य मिट्टी में  हैं तो गुलाब भी  उगे हुए हैं ,तो प्रकृति अपने आप को परिवर्तित  कर  के रखती है ।हमें प्रकृति से सीखना चाहिए कि हम कैसे अपने आप को परिवर्तित करें। कैसे अपने देश में अपने समाज में अपने गांव में एक बदलाव लाएं बदलाव की स्थिति को कैसे ठोस निर्णय में बदला  जाए । इसके लिए एकजुट होने की जरूरत है ना कि हमें जाति धर्म में बट कर काम करने की जरूरत है।


 जब तक हम जाति धर्म में बटे  रहेंगे हमारे देश की सरकारें देश का नेता हमें लड़ाते रहेंगे और हम लड़ते रहेंगे और वे  मजे लेते रहेंगे। पीढ़ी दर पीढ़ी यही होता रहेगा और हम लोग यही सोचते रहेंगे  कि पांच  साल इनको भी देख लिया जाए ,पांच साल इनको भी देख लिया ऐसे ही देखते देखते आज आजादी के 75 साल हो गए, लेकिन परिवर्तन नाम की चीज नहीं  दिखाई दे रही है ।

 

आज भी राशन के नाम पर गरीबों को  30 किलो 35 किलो राशन दिया जाता है इस महंगाई के  दौर में क्या होने वाला है दो दिन या दस दिन खाएंगे मुझे तो लगता है  ।जैसे  कि 100 के भीड़ में  दस रोटीयां फेंका जाता है कि लोग लड़ते रहे और जो पाए  वह सरकार की तारीफ करें नहीं पाए तो कर भी क्या सकते हैं ।हम कुछ कर नहीं सकते करना क्या है हमें एकजुट होना है ।जब तक हम जाति धर्म में हैं तब तक कुछ परिवर्तन होने वाला ही नहीं है ,कभी नहीं होगा। हम कितना भी प्रयास कर ले अपने भारत में मुगलों  ने शासन किया अंग्रेजों ने शासन किया तब हिंदू धर्म खतरे में नहीं था लेकिन आज जब खुद की सरकार है तब हिंदू धर्म खतरे में है। यह क्या बेवकूफ बनाना  भाई  पूरे देश पर मुस्लिम साम्राज्य था तब भी हिंदू धर्म रहा और आज भी है उनके नहीं रहने पर भी तो हम हैं हमारा धर्म है हम  कैसे मान लें कि हिंदू धर्म खतरे में हैं, और हिंदू धर्म के नाम पर जनता आपस में लड़ रही है। और सरकारें हैं कि मजा है उनका और क्या हमें धर्म से नहीं अपने अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों से लड़ना है ,अपने अधिकारों को पाना है अधिकारों के प्रति जो कर्तव्य है उसको करना  है संविधान में इतने प्रावधान किए गए हैं।


उसमें परिवर्तन कर उसको खत्म किया जा रहा है या एकदम से स्थगित कर दिया जा रहा है आम जनता को धर्म जाति आरक्षण इन्हीं सब में बांटकर आपस में लड़ाया जा रहा है और सोचने वाली बात यह है कि लोग पढ़ लिख कर भी इन्हीं सब चीजों पर सबसे ज्यादा बहस करते हैं । इसी पर बहस करते हैं और  इसी में उलझे रहते हैं, लेकिन देश में क्या समस्या है उसका कैसे समाधान हो सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बातें नहीं रखेंगे ,प्रिंट मीडिया तो सरकार की ही है तो काहे का अपनी बात रखेंगे, वह तो उन्हीं की बात रखती है जो सरकार के पक्ष में बात करते  है। आज आप सरकार के खिलाफ कुछ बोल कर देखिए देशद्रोही सिद्ध कर दिया जा रहा है, तुरंत जेल में डाल दिया जा रहा है ,संविधान का इतना उल्लंघन किया जा रहा है और पूरे देश की जनता जैसे लग रही है कि सोई हुई है और इसी के बीच में लगभग एक  साल से कोरोना अपना दहशत फैलाया है ।2014 में मोदी लहर उसके बाद  कोरोना के दो लहर  कोरोनावायरस ने दिखा दिया की  अच्छे दिन की चरम अवस्था है ,और यदि अब भी हम नहीं सीखते हैं तो हमें लगता है कि विश्व गुरु की जनसंख्या पूरे विश्व में चेला के लायक भी नहीं रहेगी ।महंगाई इतनी चरम पर है कि आम आदमी बाजार में चला जाए हजार पांच सौ  लेकर दो टाइम की  सब्जी भी नहीं मिल पा रहा है। और पैसा  खत्म हो जा रहा हैं। एक  आम आदमी अपने बच्चों को अपने परिवार को कैसे पढाता है कैसे लिखाता है   कैसे उनका  पालन पोषण करता है,  यह सरकार क्या जाने जो खुद अपना परिवार छोड़ दिया हो वह तो देश चला रहा है। तो वह परिवार कैसे चलता है वह क्या जाने बहुरूपिया बने हुए देश विदेश घूम रहा है और जुमला लंबा-लंबा फेंकता है अद्भुत कला है हम उनको सलाम करते हैं। पचास रुपये  रेट बढ़ेगा और और एक महीने बाद 50 पैसे घटाकर भाषण में कहेंगे भाइयों बहनों गैस का दाम घटा की नहीं घटा , जनता मजबूरन हां कहती हैं ।

गैस का दम  घटा  अरे कहां घटा भाई ,पचास रुपए , तुम बढ़ाए हो, 50 पैसे घटा रहे हो ,जो गैस सिलेंडर तीन सौ , चार सौ में मिलती थी आज वह गैस सिलेंडर नौ सौ रुपए  में मिल रही है। जो सरसों का तेल ₹100 में ₹80 में 90 ₹75 मिलते थे ,आज ₹200 किलो है, लेकिन कुछ समझ में नहीं आ रहा कि इस सरकार को जनता इतना क्यों  महत्व दे रही है?

क्या इसलिए कि इस सरकार ने राम मंदिर बनवाया या जनरल कैंडिडेट को 10% आरक्षण दिया इससे कुछ होने वाला नहीं है ,यदि तुम्हें लग रहा है कि  कुछ हो रहा है तो फिर जाओ राम मंदिर बना हुआ है पूजा पाठ कराओ जीवन यापन करो। काहे बेरोजगारी बेरोजगारी चिल्ला रहे हो ।

बेरोजगारी है ,परिवर्तन लाना पड़ेगा ,कुछ करना पड़ेगा, कोई ठोस कदम करना पड़ेगा ,जाति धर्म के नाम पर अलग-अलग जो हम लोग बटे  हुए हैं उस से बाहर निकलना पड़ेगा ,एकजुट होना पड़ेगा, और लड़ना पड़ेगा। सरकार के खिलाफ भी बोलना पड़ेगा तब जाकर कुछ होने वाला है नहीं तो पूरे विश्व में यही इसी   में लगा हुआ कि एक दूसरे को मूर्ख बनाओ ।


किसी भी देश की जनता सरकार की नजरों में एक जनसंख्या है एक आंकड़ा है इस  महामारी में इतने अधिक से अधिक  लोग मरे, तो क्या उसमें राम मंदिर काम आया या विश्वनाथ मंदिर काम आया।  लोग अपने दैनिक जीवन के छोटे-छोटे खर्चों को मे से  कुछ पैसे बचाते हैं ले जाकर मंदिर में दान करते हैं ,पूजा करते हैं ,ठीक है करें ।उनकी अपनी श्रद्धा है , आस्था है ,करना चाहिए । लेकिन क्या इन मंदिरों ने या राम मंदिर ने जनता के लिए कुछ किया कुछ नहीं किया क्या सरकार कुछ कर रही है, यदि राम मंदिर के स्थान पर वही 100 एकड़ में 10 हॉस्पिटल बनवाए गए होते तो न जाने कितने  लोगों  की  जान बच गई होती।   18 घंटा मेहनत करने का कोई मतलब नहीं जब तक कि सही दिशा में काम न हो ।

 न कोई सुविधाएं  हैं न कोई रोजगार  18 घंटे मेहनत का परिणाम दिख रहा है ।

  विकास विकास   विकास 

  महंगाई           बेरोजगारी 

  आकाश आकाश आकाश 

बेरोजगारी का निवारण

हमारे हिसाब से बेरोजगारी का निवारण इस प्रकार हो सकता है।

बेरोजगारी दूर करने के लिए या उसका निवारण करने के लिए सरकार तो पहल नहीं करने वाली है ,क्योंकि यदि सरकार देश की जनसंख्या का समस्या को दूर कर देंगी  तो फिर आप उनको क्यों सरकार बनाएंगे ,उनको क्यों चुनेंगे, उनको क्यों मानेंगे ,कि उनका  मान सम्मान क्यों करेंगे। जब तक आप उनसे नीचे रहेंगे तभी तक उनका आप सम्मान करेंगे ।सरकार हो या राजनेता यह जानते हैं की समस्या तो है लेकिन इसका समाधान वह इसलिए नहीं करते हैं कि जिस दिन समाधान हो गया , उनकी कुर्सी का एक गोड़ा खत्म हो जाएगा। उनकी कुर्सी डगमगाने लगेगी बेरोजगारी के निवारण के लिए हम सबको ही पहल करनी पड़ेगी पूरे देश में स्ट्राइक करना पड़ेगा और जिस प्रकार कोरोना महामारी में लाकडाउन के लगने से सारी जनसंख्या अपने घर में कैद थी बस ऐसा ही कुछ करना है ।जितनी भी  सरकारी काम हो रहा है कार्यालयी काम हो रहा है,  हो  जो भी नौकरी कर रहा, नहीं कर रहा है, सभी लोगों को चाहिए की  सारे काम को ठप कर दो अब बैठ जाओ चार , दस दिन ।

 सरकार को समझ में आने लगेगी जब  पूरे  देश की व्यवस्था डगमगाने लगेगी ।तब वह कुछ करेगा ऐसे कुछ होने वाला नहीं है। बेरोजगारी समस्या है हर देश में है। लेकिन सरकारी आंकड़े के अनुसार ही हमारे देश में सबसे ज्यादा युवा युवा हैं ,अच्छी बात है, उनका स्वागत है, लेकिन सिर्फ युवा होने का मतलब यह नहीं कि ताकत  है ,  जोश है अपने देश के लिए कुछ करना , बिल्कुल करना है।

 इसके  अलग-अलग कारण भी हो सकते हैं, हम टीचर या अध्यापक या अन्य कोई सरकारी नौकरी कर के भी कुछ कर सकते हैं। किसी भी सरकारी पद पर हम जाकर देश के हित के लिए कुछ कर सकते हैं ।लेकिन यहां पर बस अन्य देशों की तुलना किया जाएगा कि हमारे देश में इतना ज्यादा युवा है अरे वो  युवा किस काम के जो बेरोजगार पड़े हैं। परेशान पड़े हैं ,आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं ।उनकी पूरी जवानी खराब हो रही है उनको काम नहीं मिल रहा है। क्या करें? कभी सरकार यह तुलना नहीं करती है ,उसे देश से हमारी जनसंख्या ज्यादा पढ़ी लिखी है  या बेरोजगारी के आंकड़े में हम कितने उपर या कितने नीचे है ?अन्य देश कितनी ज्यादा और सुविधाओं से लैस है  ।बिना मतलब की चीजों की तुलना की जाती है आम जनता जाति धर्म में तब तक बंटी रहेगी ।

 देश की बेरोजगारी खत्म होने वाली नहीं है और आजादी ,आजादी तो आज हम सब आजाद होकर भी आजादी महसूस नहीं कर रहे हैं ,महसूस कर रहे हैं ।आपको क्या होगा उससे आजादी है धर्म ,जाति की  क्योंकि जब तक तुम इसे मानते रहोगे , तब तक वो राज करेंगे, अंग्रेजों ने अच्छा फार्मूला देकर गए थे  , कि फूट डालो राज करो। हमारे भारतीय नेता इसी को अपनाए हुए हैं अभी भी हमको अलग-अलग चीजों में बांटते हैं  और राज करते हैं हमें समझना चाहिए सीखना चाहिए ।लेकिन हम अपने चंद लालच के लिए देश की व्यवस्था को डगमगाने में मजबूर कर देते हैं। कोई भी सरकारी दफ्तर में बिना पैसे के नहीं  काम करता इसका क्या कारण है ?आखिर क्यों  ऐसा हो रहा है ?यह सरकारी दफ्तर में बैठे अधिकारियों की गलती नहीं है। हम सबकी आपकी गलती है कि हम इतने जल्दबाजी में रहते हैं, नियम का पालन नहीं करते जुगाड़ में रहते हैं कि बस मेरा काम पहले हो जाए तो हो जाएगा तो घूस दो ।

 लोग ले रहे हैं घूस देकर नौकरी पा रहे हैं और जब आप के लड़के के नौकरी के लिए घुस मांगा जा रहा,

 तो क्यों चिल्ला रहे हो ?घूस देना तो पहले आप ही स्टार्ट किए  हो, तो फिर  रह गई  बात ,बेरोजगारी और उसका निवारण निवारण तो एक ही है। पूरे देश स्तर पर एक अभियान चलाना चाहिए ।जनता को या तो रोड पर आ जाना चाहिए या तो घर में कैद हो जाना चाहिए ।ऐसा कर दो पूरे देश में परिवर्तन होना चालू हो जाएगा सरकार की  कुर्सी हिल जायेगी  ।जब तक रोजगार नहीं तब तक इस देश में कोई भी चुनाव  नहीं ।

  स्ट्राइक कर देना चाहिए और यह मांग रखनी चाहिए जब तक हमारे राज्य के युवाओं को ऐसे लोगों को जो रोजगार करने योग्य हैं ,रोजगार के काबिल हैं, उन को रोजगार नहीं मिलेगा ,तब तक हम वोट नहीं देंगे सब को एक हो जाना चाहिए ।

  लोकतंत्र ,अपने देश में इसका मतलब कुछ समझ में नहीं आता।

  फिलहाल इन बातों को छोड़ते हैं और आप सब बुद्धिजीवी हैं। इस पर विचार करें और कुछ करने के लिए कुछ पहल करें ।सिर्फ चार लोगों में बैठकर  सुबह-शाम चाय की दुकान पर बहस करने से कुछ नहीं होने वाला है ।होने के लिए कुछ बड़ा करना पड़ेगा, बड़ा करने के लिए एकजुट होना पड़ेगा ।अंततः बेरोजगारी कारण और निवारण पर मैंने जो बात रखी आप सबको मेरे शब्दों के द्वारा मेरे वाक्यों के द्वारा यदि आपको कुछ आहत  पहुंची हो तो हम क्षमा प्रार्थी हैं। लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होने के कारण मैंने अपने बातों को आप के सामने रखा  ।यदि बुरा लगे तो आप ना सुने ना पढ़े, अच्छा लगे तो अच्छी बात है हम आपके आभारी रहेंगे ।

आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद

                                      - एक बेरोजगार युवा की झुँझलाहट

                                                      कवि सी.पी. गौतम

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