Laghukatha dar ke aage jeet hai by gaytri shukla

June 11, 2021 ・0 comments

डर के आगे जीत है

Laghukatha dar ke aage jeet hai by gaytri shukla


रिमझिम के दसवें जन्मदिन पर उसे नाना - नानी की ओर से उपहार में सायकल मिली । चमचमाती लाल सायकल जिसमें हैंडल के सामने छोटा सा बास्केट भी लगा । रिमझिम बहुत प्रसन्न थी बार - बार सायकल की घंटी बजाकर सभी को दिखा रही थी । दूसरे दिन से ही बड़े जोश के साथ सायकल चलाना सीखने का अभियान शुरू हो गया । पापा सायकल थामे पीछे-पीछे दौड़ते और रिमझिम सीट पर सवार होकर डगमगाते हुए सायकल चलाती ।उसे डर लगता पर सीखने का उत्साह भी था । अभी लगभग एक सप्ताह ही हुआ था कि रविवार के दिन रिमझिम बिना मम्मी - पापा को बताए अकेले ही सायकल चलाने निकल पड़ी । अभी मोड़ तक ही पहुँची थी कि सामने से आ रही बाइक और किनारे बैठी गाय को देखते ही उसका संतुलन बिगड़ने के कारण जमीन पर गिर पड़ी । उसे चोटें तो आई ही कोहनी की हड्डी भी टूट गई और प्लास्टर चढ़ गया । धीरे-धीरे सब ठीक हो गया सिवाय इसके कि अब रिमझिम के मन में सायकल को लेकर डर बैठ गया जो उसकी उम्र के साथ बढ़ता गया । मम्मी - पापा ने समझाने का बहुत प्रयास किया पर कोई लाभ नहीं हुआ ।
समय बीता अब रिमझिम स्वयं एक माँ थी । उसके चार साल के बेटे का शरीर बुखार से तप रहा था घर पर वह और उसकी सास थे ।सास खुद घुटनों के दर्द से परेशान रहती थीं । पति काम के सिलसिले में शहर से बाहर थे । उसने अपने फैमली डॉक्टर को फोन किया वे घर आने में असमर्थ थे पर पूरी जानकारी लेने के बाद कुछ दवाओं के नाम लिखकर मोबाइल पर मैसेज किए । अब इन्हे मेडिकल स्टोर्स से लाए कौन? जो सोसायटी से बहुत दूर है । घर के आँगन में खड़ी स्कूटी मुँह चिढ़ा रही थी ।
खैर आस - पड़ोस में विनती करके रिमझिम ने दवाएँ मँगवा तो ली पर अब तक शाम होने को आ रही थी । बच्चे की तकलीफ देखकर उसे महसूस हो रहा था काश .....मैंने अपने डर को जीत लिया होता ।

गायत्री बाजपेई शुक्ला

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