geet geeta ka gayan kar govind me by dr hare krishna
गीत
जीवन दर्शन दर्शाया है,
कुरुक्षेत्र का नाम है केवल
अंतर्द्वंद हमारा है। ।।
मैं अकिंचन भाव विहव्ल ,
स्मृति पट पर लिख रहा हूं ,
दुखद काल अग्नि सी ज्वाला
जलकर भी मैं मिटा रहा हूं ।।
जितनी परीक्षा देनी होगी,
हर अंको को प्राप्त करूंगा ।
जितना प्रतिशत देना चाहे
दुख विपदा मुझको देना। ।।
घबराने की बात कहां है,
पीड़ा से भी बहुत प्रेम है,
जीवन की परिभाषा पीड़ा
शुभकामना बिल्कुल कम है ।
मिलजुल कर हम वांटा करते,
सुख दुख के हम सभी घड़ी को,
अब भी उसका ख्याल करेंगे ,
क्या रखा है जीवन में। ?
बड़ी-बड़ी बातें जब होती,
जीवन की अमराई में।
तुमको तो हम सदा मानते
आये अपने जीवन में ।।
क्या खोया क्या पाया अब तक?
गणना करना भूल गया हूं,
सबसे मीठा जो था मेरा
वही गया है दूर गगन में। ।।
ढूंढ रही है मेरी आंखें,
ना जाने क्यों नील गगन में,
हाथ सदा उठ जाता हूं ऊपर,
मानो ईश्वर वही दिखा हो ।।
जीवन का यह कैसा क्रम है,
मांगा करते सुख-दुख उससे,
बांटने की तो बात नहीं है
मांगना कितना सहज सरल है ।।
दे दे साकी मृदु जल अपना,
मेरे पास तो खारा जल है ।
स्वाद नहीं इसमें कम है ,
बड़ी कठिन से पाया इसको ।।
अरे परीक्षा बहुत कठिन है,
उत्तीर्णता का अंक नही है,
बैठा बैठा हर प्रश्नों को,
फिर भी हल करता आया हूं
बहुत कृपा है मुझ पर तेरी,,,,,,,,,,।
डॉ हरे कृष्ण मिश्र