kavita Bebasi by Namita Joshi

  बेबसी

kavita Bebasi by Namita Joshi


हर सूं पसरा है सन्नाटा, हर निगाह परेशान क्यूँ है। गुलजा़र था जो मैदान कभी कहकहों से, आज वो वीरान क्यूँ है। ये वक्त ने बदली है सूरत, हर दिल के टूटे अरमान क्यूं हैं। हर सूं पसरा है सन्नाटा......... हर शख्स है परेशां, हैरान हर इसां क्यूं है। न दिन को ही है आराम , और नींद रातों की हराम क्यूँ है। हर सूं पसरा है सन्नाटा..... गर वक्त ने बदली है करवट, तो दुश्वारियों में आवाम क्यूं है। गुज़र तो फिर भी रही है ज़िन्दगी, लेकिन ये मौत की कसमसाहट क्यूं है। माना बेबस है हर इसां, पर मजबूरियों में भगवान क्यूँ है। वक्त है थम सा गया, सारी कायनात सुनसान क्यूं है। हर सूं पसरा है सन्नाटा, हर निगाह परेशान क्यूँ है। नमिता जोशी

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