kavita shahar by Ajay jha

June 01, 2021 ・0 comments

शहर.

kavita shahar by Ajay jha


मैं शहर हूँ बस्तियों की परिधि में बसा मजबूर मजलूम पलायित नि:सरित श्रम स्वेद निर्मित अभिलाषा लिए अतीत का सफर पर निकला पथिक अनुकंपित 'बेघरों के घर' आलिशान घर बनाता सपना संजोये शहर हूँ बेखौफ रूसवाईयों से इंसानियत का हश्र हूँ यादों के मजार का अर्पित पुष्प हूँ दफन हैं रिश्ते कब्र में उगते उगाते मजदूरों का बेमिशाल कारखाना हूँ मैं एक शहर हूँ. स्वरचित. @ अजय कुमार झा.

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