kavita-haiwaniyat by antima singh
कविता-हैवानियत
कमजोर जानकर किसी को क्युं सताते हैं लोग,
मासूम दिलों पे पत्थरों की बौछार क्युं चलाते हैं लोग,
कभी सोचते हैं क्युं नहीं कि वे भी हैं दुनियां में ही,
कभी उनके भी दिल को चोट पहुंचाएंगें लोग,
नमक फिर उसी चोट के घावों पर फैलाएंगे लोग,
है गरीब उसकी बस इतनी सी खता है,
रोटियों के टुकड़ो को तरसता ही वह सदा है
लाख वह सही हो अपनी राह पर तो क्या,
फिर भी उसकी खिल्लियां उड़ाते हैं लोग,
मजबूर वादियों में उसे क्युं जलाते हैं लोग,
इसां तो वह भी है, आत्मा भी तो है वही उसकी,
फिर भी गिरा है वह, दिवाना क्युं निगाहों में सबकी,
अभी जो उसने चोट खायी है ,हम सा नहीं है क्या,
मर्जें दिल पे क्युं न मरहमें लगाते हैं लोग,
संतप्तवक्षा को क्युं फिर-फिर जलाते हैं लोग,
दलीलें दे नहीं सकता जो अपने, शेष बचे अधिकारों पे,
चलना पड़ता ही जिसको, नंगी तलवार की धारों पे,
जीवन की बंजर-बाग में कुछ,बीज आस के जो बोया,
उसके उद्भूत उम्मीदों को क्युं,फिर से कुचल जाते हैं लोग,
कहो 'अन्तिमा' दिनोंदिन यूं, 'हैवानियत' क्युं बढ़ाते हैं लोग।।
धन्यवाद!
-अन्तिमा सिंह(स्वरचित,मौलिक)
-अप्रकाशित रचना-