Laghukatha- mairathan by kanchan shukla

 मैराथन

Laghukatha- mairathan by kanchan shukla


डॉक्टर ने बोला है, आज के चौबीस घंटे बहुत नाजुक हैं। हल्का फुल्का सब सुन रहा हूँ। कोई मलाल नही। जीवन की इस अंतिम बेला में, पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो कुछ नही जिसकी मुझे चाहना हो।

परिवार में सभी विचल और खिन्न हैं। सब स्वार्थ निहित शोक में होंगे। पत्नी का ही रहरहकर ख्याल आता है। उसने हमेशा सबका ख्याल रखा था।

मेरे ना होने पर, उसका ख्याल कोई नही रखेगा। जब मेरे पास कुछ नही था, उसने मुझे अपना सर्वस्व समर्पित किया। और आज भी, उसी का गम है।

जो चाहिए, ये जिंदगी बख़्श दे, ऐसा तो कम ही हुआ है। चाहूँ तो शायद बच भी जाऊँ। अस्थमा तो आधी जनता को है। पर अब बस हो गया।

कितना जियूँ?? कुछ तो अब ठीक होता नही मुझसे। कितनी कोशिश की है, हालात से लड़ने की। जिसकी जिंदगी है उसे ही सुधारना पड़ेगा।

चलचित्र समान आँख के आगे सब चल रहा है। बचपन से लेकर आजतक कोशिश करता रहा। बड़े सारे प्रयास सार्थक भी हुए। उन्ही से अब, दिल को बहलाता हूँ।

पढ़ालिखा, बड़ा अफसर बना। मातापिता की ख्वाहिशें पूरी कीं। शादी, बच्चे, छप्पर को पक्का घर बनाया। फिर हाड़तोड़ मेहनत कर पैसा कमाया।

एक आध खुद के रहने के लिए भी छोटामोटा बंगला बनाया। बच्चों को सिखाने के लिए अपने चरित्र, व्यवहार के उदाहरण से सामाजिक जीवन की नींव रखी।

बच्चों को जो बनना था वही बने। सब कुछ मिल जाये तो बिरले ही आगे बढ़ते हैं। अपने कर्म और भाग्य से क्या बने, वो ही जानें??

मेरा लक्ष्य कभी नही बदला। सबका भरपूर कल्याण हो। थोड़ा बहुत मेरे अपनों का भी। सेवा में सदा तत्पर, इसी कामना से जीवन जिया।

जो ना बन सका, वो तुम्हारे हवाले राम। प्रभु के निर्णय को स्वीकृत करते हुए। इस मैराथन का अंत स्वीकार करता हूँ। जीवन रेखा सीधी होते ही, प्रलाप शुरू हो गया।

मौलिक और स्वरचित
कंचन शुक्ला- अहमदाबाद
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