Kabir par kavita by cp gautam

June 27, 2021 ・0 comments

कबीरदास पर कविता 

Kabir par kavita by cp gautam
होश जब से सम्भाला , सम्भलते गये
आग की दरिया से निकलते गये
फेंकने वाले ने फेंक दिया किचड़ में
कँवल बन के निकले और खिलते गये

जात धर्म के लड़ाई में एक वीर भी  था
कहते हैं बीते ज़माने में एक कबीर भी था
सताया दबाया किसी को नहीं
चेताया जगाया निकलते गये
होश......आग.....

सिखाना चाहा प्रेम की भाषा
लोग ठहरे कर गये परिभाषा
जलाया ज्ञान का मशाल
लोग बदले कि बदलते गये
होश......आग.......

लोग खड़े थे उनके विरोध में
आखिर क्या कह दिया उसने
जो लगे हैं लोग शोध में
कारवां बनाया कि लोग मिलते गये
होश....आग......

हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई
लोग रटते है भाई भाई
न जाने क्यों लोग फिसल कर गिरते हैं
क्या इन रिस्तो पे जमी है काई
आधा सच ,झूठा सच को सच में बदल दिया
जलाया ज्ञान का मशाल
लोग बदले कि बदलते गये
होश...आग...

अपना दर्द पराया दर्द सब एक हैं
खुद से प्यार करना सिख लो
रिश्ते तो अनेक हैं
मीठी वाणी बोलने में खर्च लगता है क्या ?
समझाया कि लोग समझते गये
होश.....आग.....

गुरू मिल गये रामानंद
हो गये कबीर आनंद
चलाया कबीर पंथ
लोग जुड़े कि जुड़ते गये
होश जब से सम्भाला सम्भलते
आग कि दरिया से निकलते गये
फेंकने वाले ने फेंक दिया कीचड़
कँवल बन के निकले और खिलते गये

कवि सी.पी. गौतम

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