kavita Mera gaon by ramdheraj
मेरा गाँव
जामुन वो महुआ वो पीपल पुराना।
गजब याद आता है गुजरा जमाना।
लड़ना-झगड़ना घड़ी दो घड़ी थी।
अपना-पराया है किसको पड़ी थी।
हँसने में जीना था रोने में गाना।
मेरे गाँव का था यही बस तराना।।
कभी सियरपैंती कभी हाॅकी डंडा।
कभी कंचा-गोली कभी गुल्ली- डंडा।
खाने की सुध थी न पानी की चर्चा।
वही कंचा-गोली वही एक चर्चा।
हार जीत का था भला क्या ठिकाना।
कभी हार जाना कभी जीत जाना।
बारिश की पानी में नदिया में जाना।
किनारे से होकर छलांगे लगाना।
बाहर से भीतर में डुबकी लगाना
कभी हाथ के बल कभी पेट के बल।
कभी हाथ सीपी कभी हाथ घोंघा।
कभी हाथ आना कभी हाथ जाना।
घर पर पहुँचकर के पट्टी पढाना।
कहीं न गया था यहीं था ठिकाना।
छिपाने पर छिपती कहाँ थी सचाई।
दोबारा न जाने में ही थी भलाई।
रोजमर्रा का जीवन यही था रे प्यारे।
बचपन का संगम यही था रे प्यारे।।
रामधीरज एम ए हिन्दी
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय