Kavita-paap nhi hai pyar by devendra arya

 पाप नहीं है प्यार

Kavita-paap nhi hai pyar by devendra arya



अपने प्यार को कभी ऐसे नहीं सरापते हज़ूर
कि श्राप लग जाए

पूछ पछोर कर नहीं किया जाता 
न आपने किया
न ही मजमा लगा कर होती है विदाई प्यार की
तो फिर क्यों ?

प्यार में होना तो ठीक 
मगर प्यार के हैंग ओवर की सार्वजनिक उल्टियां 
ठीक नहीं

प्यार की परिणति बंधन होती होगी
मगर पहचान सिंदूर नहीं

कोई आपका अपना था
केवल आपका
अब नहीं है तो यह जन सरोकार याचिका नहीं

चिद्दियां मत उड़ाइए उन भावनाओं की
जो कभी मंत्रों सी पवित्र रही होंगी
टूटना उतना ही सच है
जितना जुड़ना

प्यार की हर कविता नफ़रत से बड़ी होती है

पति के प्यार में लाश के आगे धरना देती स्त्री
और पत्नी के प्यार में शव-तांडव करता पुरुष
प्रेरणनादायक आख्यान हैं 
जिसे पूजा जाता है उसे जिया नहीं जाता

प्यार में पड़ना पुण्य भले न हो
प्यार का छूटना पाप नहीं 
ट्रेन का छूटना मंज़िल का छूटना नहीं होता
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