kavita- sab badal gya by jitendra kabir

June 06, 2021 ・0 comments

सब बदल गया है

kavita- sab badal gya by jitendra kabir




आजादी के परवानों ने

कुर्बान किया खुद को

जिनकी खातिर,

उन आदर्शों के लिए

देश के लोगों का अब

ईमान बदल गया है,

राजभक्ति कहला रही है देशभक्ति

यहां पर अब,

बदली हुई परिस्थितियों में

देशभक्ति का प्रतिमान बदल गया है।


विरोध को दिया गया है

गद्दारी का दर्जा

और आन्दोलन का देशद्रोह से

नाम बदल गया है,

क्रांति के नाम पर लोग

बदलते हैं केवल अपने दल ही

यहां पर अब,

बदली हुई परिस्थितियों में

क्रांति का परिणाम बदल गया है।


गरीब अब भी तरस रहे हैं

दो वक्त की रोटी को,

और पूंजीपति चतुर बनकर

सरकार से

मुखौटा बदल गया है,

सेवा के नाम पर नेता

बटोरते हैं केवल वोट ही

यहां पर अब,

बदली हुई परिस्थितियों में

सेवा का दाम बदल गया है।


काबिलियत और शिक्षा की

पूछ कम हो रही

भीड़ तंत्र जनतंत्र का भेष

बदल गया है,

दलगत वफादारी के ईनाम में

बंटते हैं संवैधानिक पद

यहां पर अब,

बदली हुई परिस्थितियों में

चापलूसी का ईनाम बदल गया है।


जितेन्द्र 'कबीर'


यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।

जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश

साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'

संप्रति - अध्यापक



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