Andhnishtha me andhe inshan by Jitendra kabir
July 11, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
अंधनिष्ठा में अंधे इंसान
धर्म का चश्मा अपनी अक्ल पर
पहने इंसान
दूसरे धर्मों में देखता है केवल कमियां,
उनकी खूबियों की
आलोचना करने के लिए भी
सोचे रहता है वो मन में तर्क कई,
जबकि अपने धर्म की
देखता है वो सिर्फ खूबियां,
कमियों पर उसकी वो
विश्वास कभी करता नहीं,
इसी चश्में के प्रभाव में
ठहराता जाता है वो धर्म के नाम पर
नरसंहारों को भी सार्वजनिक तौर पर सही।
इसी तरह आजकल
किसी दल विशेष का समर्थक इंसान
दूसरे दलों में निकालता है केवल कमियां,
उनकी खूबियों को
अपनी सच्ची - झूठी दलीलों से
हमेशा करता है दरकिनार,
जबकि अपने दल के बारे में आलोचना
वो कभी किसी से सुनना चाहता नहीं,
इसी अंधनिष्ठा के प्रभाव से
ठहराता जाता है वो अपने दल के
झूठे प्रचार एवं गलत निर्णयों को भी
सार्वजनिक तौर पर सही।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
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