Chahte hai hukmran by Jitendra kabir
चाहते हैं हुक्मरान
चाहते हैं हुक्मरान
ऐसी व्यवस्था बनाएं,
जैसा सरकार कहे
सारे मान जाएं,
एक यंत्र की तरह
बिना प्रश्न उठाए,
आंखों वाले अंधे
कानों वाले बहरे हो जाएं,
जुबान वाले गूंगे
अक्ल वाले मूर्ख हो जाएं,
ज़ुल्म हो जिसपे वो भी
सरकार के गुण गाएं,
शोषण का शिकार
चुपचाप कहीं मर जाए,
व्यवस्था के विरोध में
कभी न आवाज़ उठाएं,
जो ऐसा न करें
उन्हें खूब बदनाम किया जाए,
झूठे अभियोग लगाकर उन्हें
जेल में डाल दिया जाए,
किसी भी कीमत पर
सरकार पर आंच न आए,
बिना किसी विरोध के
आदर्श राम-राज्य कहलाएं।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314