Guru bin gyan kavita by sudhir srivastava

 गुरु बिन ज्ञान

Guru bin gyan kavita by sudhir srivastava


हमारे देश में गुरु शिष्य परंपरा की

नींव सदियों पूर्व से स्थापित है।

इस व्यवस्था के बिना 

ज्ञान और ज्ञानार्जन की

हर व्यवस्था जैसे विस्थापित है।

माना कि हमनें विकास की सीढ़ियां

बहुत चढ़ ली है, 

मगर एक भी सीढ़ी 

हमें भी तो बता दो 

जो गुरु के बिना गढ़ ली है।

भ्रम का शिकार या 

घमंड में चूर मत हो,

धन,दौलत का गुरुर 

अपने पास ही रखो,

आँखे फाड़कर जरा 

अपने आसपास देखो।

कब,कहाँ और कैसे 

तुमनें ज्ञान पाया है?

जिसमें गुरु का योगदान

जरा भी नहीं आया है।

जन्म से मृत्यु तक 

वह समय कब आया है?

जब तुम्हारा खुद का ज्ञान 

तुम्हारे अपने काम आया है।

जिस ज्ञान पर आज इतना 

तुम इतराते हो,

ये ज्ञान भी भला तुम 

क्या माँ के पेट से लाये हो?

कदम कदम पर 

ये जो ज्ञान बघारते हो,

सोचो क्या ये ज्ञान भला 

स्वयं से ही पाये हो।

प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष हमें जीवन में 

हजारों गुरु मिलते हैं,

उनके दिए ज्ञान की बदौलत ही तो 

हमारे एक एक दिन कटते हैं।

गुरु के बिना भला 

ज्ञान कहाँ मिलता है?

गुरुज्ञान की बदौलत ही तो 

हमारा जीवन चलता है।

◆ सुधीर श्रीवास्तव

       गोण्डा, उ.प्र.,भारत

    8115285921

©मौलिक, स्वरचित,

08.07.2021

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