Desh prem by Sudhir Srivastava
July 23, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
देशप्रेम
आज हम सब को एक साथ आना होगा
मिलकर ये सौगंध सभी को लेना होगा,
देशप्रेम का चढ़ रहा जो छद्म आवरण
उससे हम सबको बचना बचाना होगा।
ओढ़ रहे जो देश प्रेम का छद्म आवरण
नोंच कर वो आवरण नंगा करना होगा,
देशप्रेम के नाम पर भेड़िए जो शेर हैं
ऐसे नकली शेरों को बेनकाब करना होगा।
देशभक्तों पर उठ रही जो आज उँगलियाँ
उन उँगलियों को नहीं वो हाथ काटना होगा,
देश में गद्दार जो कुत्तों जैसे भौंकते है,
ऐसे कुत्तों का देश से नाम मिटाना होगा।
जी रहे आजादी से फिर भी कितने हैं डर
डर का मतलब अब उन्हें समझाना होगा,
देश को नीचा दिखाते आये दिन जो गधे हैं रेंकते,
ऐसे गधों को अब उनकी औकात बताना होगा।
उड़ा रहे संविधान का जब तब जो भी मजाक
भारत के संविधान का मतलब समझाना होगा,
समझ जायं तो अच्छा है देशप्रेम की बात
वरना समुद्र में उन्हें डुबाकर मारना ही होगा।
● सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित
21.07.2021
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