gazal tulsi by pradeep shrivastav
ग़ज़ल तुलसी
अबकी इस तरहा मुहब्बत को निभाना है मुझे।।
अब न आँखों में नमीं है न शहर में पानी ,
धार गंगा की तेरे गाँव में लाना है मुझे ।।
चाँद रख्खा है छुपाकर के कुछ अमीरों ने ,
रोशनी के लिए घर ख़ुद का जलाना है मुझे ।।
मर गई भूख ,तवे ठंडे आस इक बाकी ,
उनकी वापस वही उम्मीद को लाना है मुझे।।
बेबज़ह शोर है गलियों में कैसा है क्यों है,
क्या हक़ीक़त है पता इसका चलाना है मुझे।।
प्रदीप श्रीवास्तव
करैरा जिला शिवपुरी मध्यप्रदेश