geet daduron tum chup raho ab by shivam


- गीत
दादुरों तुम चुप रहो अब






ऐ किनारों, इन हिलोरों को तुम्हें सहना पड़ेगा।
जिंदगी दिन- रात है, दिन रात में रहना पड़ेगा।
उल्लुओं क्यों डर रहे हो, दिन ढलेगा रात होगी।
दादुरों तुम चुप रहो, अब जल्द ही बरसात होगी।


है समय प्रतिकूल तो क्या?
जान मैं ले लूं घड़ी की।
जुर्म जब हमने किए तो,
क्या खता है हथकड़ी की?
दिल को मत बोझिल करो, अब जल्द ही मुलक़ात होगी।
दादुरों तुम चुप रहो अब.....


आज दुनिया में वबा के,
सख़्त पहरे हो रहे हैं।
घाव जो गहरे थे वो अब,
और गहरे हो रहे हैं।
पर न तुम चिंतन करो अब, रब से मेरी बात होगी।
दादुरों तुम चुप रहो अब.....


जिंदगी की चाह को तुम,
अश्रुओं में मत बहाना।
रिक्त पोखर दिल के भरता,
आएगा सावन सुहाना।
लौटती मुस्कान अब हर, द्वार पर तैनात होगी।
दादुरों तुम चुप रहो अब.....


✍🏻कवि - शिवम् "सांवरा"
लखीमपुर खीरी [उ०प्र०]
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