Parwah kaun karen by kalpana kumari

July 03, 2021 ・0 comments

व्यंग्य-कविता
परवाह कौन करे

Parwah kaun karen by kalpana kumari
जो स्वत: मिल रहा जीवन में,
उसकी परवाह कौन करे। आती सांसे जाती सांसे, सांसो पर जो जीवन टीका है, इन आती जाती सांसो की परवाह कौन करे। पल में उठती पल में गिरती, आँखों की जो रक्षा करती, उन उठती गिरती पलकों की परवाह कौन करे। रक्त-रक्त और मज्जा-मज्जा, दौड़ लगी है प्राणों की, इन दौड़ लगाती प्राणों की परवाह कौन करे। आते लोग जाते लोग, अटल सत्य जो मृत्यु कहलाती, निरंतर हो रही मौतों की परवाह कौन करे। सर्दी जाती गर्मी आती, गर्मी जाती बारिश आती, इस बदल रहे मौसम की परवाह कौन करे। कटते पेड़ मिटती हरियाली, छँटते जंगल बसते बस्ती, इस जीवनदायिनी वृक्षों की परवाह कौन करे। बढ़ते उद्योग बढ़ते प्रदूषण, दूषित हवा और दूषित जल, हो रहे प्रदूषित जलवायु की परवाह कौन करे। घटती उम्र बढ़ती आबादी, संकट में है भावी पीढ़ी, हमारी आनेवाली संतानो की परवाह कौन करे।                                      - कल्पना कुमारी

Post a Comment

boltizindagi@gmail.com

If you can't commemt, try using Chrome instead.