tum mere ho kavita by Anita Sharma jhasi
तुम मेरे हो
कहाँ खो गये गिरधारी।
मोर मुकुट,बंसीवाले।
ग्वाले ,गोपियाँ सब रीझे,
पर....तुम मेरे हो गिरधारी।
कब से बाँट निहार रही हूँ,
ओ राधा के दिल की धड़कन।
मोर मुकुट नटखट मोहन ,
माँ जसोदा के प्यारे।
मीरा पुजारिन तेरी मोहन,
लोक लाज तज शरण तिहारे आई।
पर तुम बस मेरे हो ।
मैं भक्त अदना सी हूँ मोहन,।
पर तुम मेरे प्यारे मोहन।
बहुत अवगुण भरे हैं
मुझमें,
तुम स्वीकारो मेरे प्यारे गिरधारी।
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तुम मेरे हो,मैं तुम्हारी,
---अनिता शर्मा झाँसी
----मौलिक रचना