Balkavita ghar by mainudeen kohri
बाल कविता घर
घर ,गाँव - गली झूलेंगे झूले ।
नन्नी - नन्नी, प्यारी - प्यारी बेटियाँ ।।
झूलो के संग बारी - बारी झूलें ।
हंसती-गाती छोटी-मोटी बेटियाँ ।।
पेड़ - चौपाल पर सजेंगे ये झूले ।
मस्त - मस्त सी इतराती बेटियाँ ।।
पापा-मम्मी घर-आँगन बाँधे झूले ।
रिमझिम के संग नाचे गाए बेटियाँ ।।
सावन की फूव्वारों के आनन्द ले झूले ।
कभी खड़े-बैठे संग-संग झूले बेटियाँ ।। =========================
स्वरचित: मईनुदीन कोहरी