Inshaniyat ki ummid by Jitendra Kabeer
August 22, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
इंसानियत की उम्मीद
कितने लोग हैं...
जो सड़क पर पड़े पत्थर नजर आने पर
उन्हें उठाकर एक तरफ कर देते हैं
ताकि उसके कारण कोई दुर्घटना न घटे।
कितने लोग हैं...
जो राह में आ रही कंटीली झाड़ियों को
हटा कर एक तरफ़ कर देते हैं
ताकि वो किसी राहगीर को न चुभे।
कितने लोग हैं...
जो दुर्घटना में घायल हुए किसी इंसान को
उठाकर अस्पताल पहुंचा देते हैं
ताकि किसी तरह से उसकी जान बचे।
कितने लोग हैं...
जो किसी मजलूम पर अत्याचार होता देख
अत्याचारी का भरसक विरोध कर देते हैं
ताकि उसका पीड़ा कुछ हद तक बंटे।
कितने लोग हैं...
जो बिना किसी आशा के गुमनाम रहकर
किसी जरूरतमंद को सहारा देते हैं
ताकि वो भी सम्मानपूर्वक जिंदगी जिए।
बहुत कम लोग हैं ऐसे
लेकिन यही कुछेक लोग सभ्य समाज के
मूल्यों को जीवनदान दे देते हैं
ताकि यह दुनिया रहने लायक जगह बने।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति- अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314
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