Vo hai Taliban by Jitendra Kabeer
वो है तालिबान
जो चाहता है...
कि उसकी इच्छा के अनुसार ही
दुनिया के सब लोग चलें,
उसके तय किए हुए नियमों के अनुसार
दुनिया में सबके बच्चे पलें,
बन्दूक की नोंक पर लोगों को डरा-धमकाकर
समझता है खुद को जो बड़ा बलवान,
हर उस इंसान के
हृदय में बसता है एक तालिबान।
जो चाहता है...
कि प्रेम को पूरी तरह कुचलकर ही
दुनिया के सिर नफरत का ताज सजे,
उसके निर्णयों के पालन में ही
दुनियावालों के सर झुकें,
मजबूर, असहाय लोगों पर करके अत्याचार
समझता है खुद को जो बड़ा महान,
हर उस इंसान के
हृदय में बसता है एक तालिबान।
जो चाहता है...
कि उसकी समझ से बढ़कर कोई भी
दुनिया में न आगे बढ़े,
उसके तय किए हुए पैमाने के अंदर ही
अपने आसमां की खोज करे,
पशुता को इंसानियत पर जबरन थोपकर
समझता है खुद को जो बड़ा इंसान,
हर उस इंसान के
हृदय में बसता है एक तालिबान।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314