Ek mulk mar diya hai by Jitendra Kabeer
एक मुल्क मार दिया है
लोकतंत्र के ध्वज-वाहक बने थे जो
उन सबने अपना पल्ला झाड़ लिया है,
जीत हमारी हुई है, लिखकर उन्होंने
अफगानिस्तान का पन्ना फाड़ दिया है।
क्रूरता के लिए बदनाम तालिबान ने
उस धरती पर अपना खूंटा गाढ़ लिया है,
और इसी के साथ उदारता की नस्ल को
इस बार जड़ से उन्होंने उखाड़ दिया है।
मूकदर्शक बना है अंतरराष्ट्रीय समुदाय
अपने मुंह में दही सबने जमा लिया है,
उनको चिन्ता है अपने लोगों की बस
अफगानों को मरा उन्होंने मान लिया है।
अब रोक नहीं सकता है कोई उनको
जब समर्पण ही सबने ठान लिया है,
चुप रहकर मंजर देख रहे सब कायरो
तुम्हारी बुजदिली ने एक मुल्क मार दिया है।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314