Prathana by Jay shree birmi
September 30, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
प्रार्थना
न दे दर्द इतना कि सह न सकूं मैं
मेरे दाता संभालना तो तुझ ही को हैं झमेले मेरे
भुला दे सब दोष मेरे बिनती हैं ये
न तैर पाऊंगी अब ये दुःख का दरिया
बहुत तैर चुकी हूं रवां – ए– मौजों के खिलाफ
थक चुकी हु हार चुकी
तेरी खौफ–ए– दुनियां से
या तो मुक्ति दिला या बदल दे तेरी लिखी तकदीर को
अब तो समझ अपनों के दर्द और दिखा दे रेहम
तबदीर और तकदीर दोनों के अमल में
न हारी हूं पर जीती भी नहीं लिखी तूने तकदीर जो संसार में
हंस कर तुम सर माथे पे हैं लगाया
किंतु अब दे दी हैं तेरे ही हाथों में पतवार
न सुख में सोचा न दुःख में सोचा
हर हालत को अपनाया हैं
अब बहुत हुआ हैं नारायण अब
क्या मैं कह दूं ये”अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल"
हा कह दे या आजा अब
नैया पार लगाने को
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद
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