Teer nadi ka By H.K Mishra
तीर नदी का
तीर नदी का दूर किनारा ,
कहां नहीं तुझको ढूंढा है,
रात अंधेरी नदी उफनती,
मिलन अंत वही किनारा ।।
मौन हमारा मौन से बढ़कर,
कहीं नहीं संदेश किसी का,
आओ मिलकर मौन रहें,
मौन साधना जीवन की ।।
मौन गई तू छोड़ मुझे ,
अफसोस मुझे है इसका,
डूब गया कूल किनारा,
तट पर रहा अकेला ।।
आना-जाना दर्द भरा है,
नियति का सत्य यहीं है ,
जाने अनजाने पथ पर,
चलना कितना और बचा ।।
अरे समर्पण जीवन का,
बची जिंदगी कितनी है,
मैं भी इतना उलझा हूं ,
सुलझाने को बैठा हूं ।।
छंद लोरियां लिखने का,
मिला बहाना अपना है,
रोने को दर्द मिला है ,
मेरा साथी चला गया। ।।
मित्र मंडली कहते हैं,
जाना मेरा निश्चय है ,
दर्द छोड़ जो गई यहां,
ढोना उसका बाकी है ।।
जैसा बोया काटना मुझको,
निश्चय यह करना होगा ,
मीठे का फल मीठा होता,
कड़वा से डर लगता है ।।
विश्वास से बढ़ता रहा है ,
आत्मविश्वास हरक्षण हमारा,
वेदना के हर घड़ी में ,
मिलता रहा तेरा सहारा ।।
सुख और संतोष से,
मिलता रहा पूर्ण जीवन,
मैं कहां हूं तू कहां है ?
यही है अपूर्ण जीवन ।।
तीर नदी का अदृश्य किनारा,
कितना धुंधला सा दिखता है,
मिलन अंत है मौन प्रेम का ,
यह मुझ को स्वीकार नहीं है ।।
मौलिक रचना
डॉ हरे कृष्ण मिश्र
बोकारो स्टील सिटी
झारखंड ।