Rishto ka mahatva by Sudhir Srivastava
रिश्ता की दूरियां-नजदीकियां
रिश्तों का महत्व
लंबी दूरियों से नहीं
मन की दूरियों से होता है,
अन्यथा माँ बाप और
घर के बुजुर्गों के लिए
वृद्धाश्रम पड़ाव नहीं होता।
अपने सगे रिश्तों में भी
भेदभाव क्यों होता?
भाई भाई का दुश्मन क्यों बनता
बहन भाई में भी फासला कहाँ होता?
अब तो सगे रिश्ते भी
खून के प्यासे बन जाते
जाने कितने बाप, बेटे, भाई, बहन
अथवा पति या पत्नी के हाथ
अपनों के खून से ही क्यों रंगे होते?
माना कि ये अपवाद होंगे
फिर अंजान लोगों में भी तो
प्रगाढ़ रिश्ते अपनों की तरह बन जाते हैं,
जाति धर्म मजहब से दूर
एक दूसरे की खुशियों की खातिर
क्या कुछ नहीं कर जाते हैं।
लंबी दूरी के रिश्ते भी तो
इतिहास बना जाते हैं।
अब तो आभासी दुनियां के भी
रिश्तों का नया दौर चल रहा है,
कुछ कटु अनुभव भी कराते हैं
तो कुछ रिश्तों की मर्यादा
और मान, सम्मान, अधिकार,
कर्तव्य की बलिबेदी पर
अपने को दाँव पर लगा देते हैं,
अपनी जान तक दे देते
रिश्तों का क्या महत्व है?
दुनियां को बता जाते।
रिश्तों में दूरियां बहुत हों मगर
समय आने पर बेझिझक
नजदीकियों का अहसास करा जाते
रिश्तों का मान बढ़ा जाते।
✍ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित