Chalo bulava aaya hai by Sudhir Srivastava
संस्मरण
चलो बुलावा आया है
वर्ष 2013 की बात है ,उस समय मैं हरिद्वार में लियान ग्लोबल कं. में काम कर रहा था। कं. में होली की छुट्टियां हो गई थी।कुछ गिने चुने लोगों को छोड़कर अधिकांश लोग अपने घरों को निकल चुके थे। मैं फरवरी में ही घर से लौटा था,लिहाजा अब फिर तुरंत जाना भी अनुचित ही लगा।
शाम को दो अन्य साथियों के साथ छुट्टियों में घूमने जाने की पूर्व प्लानिंग पर चर्चा के अनुसार समय और स्थान की चर्चा हुई।मगर तब वैष्णो देवी की कोई चर्चा ही नहीं हुई।सुबह निकलना भी था,अतः हम लोग अपने अपने कमरों पर चले गये।
रात करीब 11बजे दोनों में से एक मित्र का फोन आया -चलो बुलावा आया है।
मैंने भी मस्ती से पूछा -लगता है प्लान में कुछ तब्दीली हो गई ।
उधर से मित्र ने बताया-पूरा प्लान ही उलट गया ,बस आपकी सहमति चाहिए(कारण मैं उन दोनों से उम्र और अनुभव में बड़ा था)।
मैनें पूरी बात पूछी तो पता चला कि अब हम लोग वैष्णो देवी के दर्शन करने चलेंगे। मैंनें भी सहमति दे दी,क्योंकि मेरे बिना वो जाने वाले नहीं थे और मैं भी उन दोनों के अलावा भी अपने लिए माँ के सचमुच बुलावे जैसा अवसर मान टालने का इरादा भी नहीं रखता था।वैसे भी माँ के दर्शनों से अब तक मैं वंचित ही रहा।
अगले दिन हम तीनों सुबह ही निकल गये और हरिद्वार के बजाय हमनें ऋषिकेश से ट्रेन पकड़ने का फैसला किया।लिहाजा हम लोग हरिद्वार से पहले ऋषिकेश गये। ज्ञातव्य हो कि जम्मू जाने वाली ट्रेने हरिद्वार होते हुए ही जाती हैं।
हम तीनों ने ऋषिकेश में रामझूला, लक्ष्मण झूला का अवलोकन किया और गंगा स्नान का सुख उठाया, कुछेक मंदिरों के दर्शन, भ्रमण के बाद दोपहर में लगभग एक बजे अपनी यात्रा आरम्भ की और पूरी मस्ती करते हुए लगभग तीन बजे रात जम्मू पहुंचे।स्टेशन पर ही दैनिक क्रियाओं के बाद स्टेशन के बाहर से ही बस द्वारा कटरा पहुंचे और शीघ्रदर्शन के लालच में अपनी आगे की यात्रा शुरु कर दी।बाणगंगा में स्नान के साथ जारी यात्रा आखिर मंजिल तक पहुंच कर ही रुकी। सौभाग्य से हम तीनों के बाद ही शेष लोगों को उस पाली में रोक दिया गया।ताज्जुब यह कि हमारे लाइन में लगने से पूर्व तक हो रही वारिश भी हमारे लाइन में लगते ही बंद हो गई।बहुत ही सुकून से मांँ के दर्शन का आनंद उठाने के अलावा हिमपात का नजारा भी दिख ही गया।सुदूरदूरदूर पहाड़ियों पर दिखा वह खूबसूरत दृश्य मन को मोह गया।जितना हम डर रहे थे,उतनी ही सरलता, सहजता, सुगमता से माँ वैष्णो देवी ने हमें अपना आशीर्वाद दिया।आपको बताता चलूँ कि माँ के दर्शनों का लाभ ठीक होली के दिन ही मिला।सचमुच यह अहसास करने को काफी था कि माँ ने वास्तव में हमें बुलाया था,तभी तो सबकुछ इतनी तेजी से हुआ कि कम से कम हमें और कुछ सोचने का मौका भी न मिला।
खैर माँ के दर्शन के बाद हम कालभैरव के दर्शन, आरती के बाद वापस हुए।मौसम ने फिर करवट बदला,और हमें रात्रि विश्राम रास्ते में ही करना पड़ा।सुबह जल्दी ही वापसी की राह पकड़ हम अपने मार्ग पर चल दिए और प्रसन्नता से माँ के दर्शनों से मुदित पुनः अगले दिन वापस हरिद्वार पहुंच गये।
आप सभी मेरे साथ बोलिए जय माता दी।
ये थी हमारी पहली और अनियोजित वैष्णो देवी माँ की दर्शन यात्रा।