Jivan ko jeena by Anita Sharma
October 08, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
"जीवन को जीना "
जीवन ने सिखलाया है,
जीवन को जीना है कैसे?
सुख के पीछे भागोगे तो,
दुख चिंता ही पाओगे ।
जो प्राप्त है वही पर्याप्त है,
प्रशंसा में फूलो नहीं ,
आलोचना से घबराना कैसा?
जीवन तो बस एक संघर्ष है,
समस्या तो आयेगी ही.
समाधान भी मिलेगे ही।
फिर चिंता फिक्र करें ही क्यों?
जीवन के साथ खुश रहना है।
एक मूलमंत्र पाया है,
अतीत बीत गया छोड़ो ।
भविष्य में जो है आयेगा ही ,
क्या घबराना?क्यों रोना है।
जीवन को हंसकर जीना है।
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