"मोम सी नारी"
बाहर से सख्त अन्दर से नर्म है।
भावनाओं में बह सर्वस्व लुटा देती।
हाँ अधिकतर छल से छलनी हो जाती।
कभी न समझा जमाने ने उसे ।
मोम सी जलती-पिघलती रही ।
सबका ख्याल-ख्वाहिशे समझी उसने।
पर हाय!न भावनाएँ समझी किसी ने।
नारी जीवन की यही कहानी है।
स्वाभिमानी और मेहनती इसकी निशानी है।
जान तक न्योछावर कर देती परिवार में
पर....मान अपनेपन को तरसती है।
आंखो से अश्रु पीड़ा स्वयं पी जाती है।
बाहर नर पिशाचों से स्वयं को बचाती है।
जलकर स्वयं कई बार मरती है।
इस संसार में हर गम सहती है।
कठोर जवान की दावानल सहती है।
मोम सी हर रोज ही पिघलती है।।
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