Naari by Jay shree birmi
October 23, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
नारी
नारी हूं मैं,बुराइयों पर भारी हूं मैं
मोम सी हूं मैं सच्चाई पर
भीतर से कड़ी हूं पत्थर से भी
न झुकती हूं न रुकती हूं
सरपट बढ़ती जाती हूं
न ही कोई रुकावट का असर
न कोई भी,कभी भी खेद हैं
पाना ही हैं लक्ष्य और डटें रहना हैं
न छूटे पतवार हाथों से बस पकड़े रहना हैं
मजधार हो या किनारा मंजिल को पाके रहना हैं
मोम हूं मैं अपनों के लिए
फिर वहीं पत्थर से भी कड़ी हूं मैं
पाने के लिए लक्ष्य को दम साधे खड़ी हूं मैं
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