Roya kabira smajh na paya by Dr. Hare krishna Mishra
रोया कबीरा समझ न पाए
रोया कबीरा दीन दुखियों पर,
गाया कबीरा मोहताजों पर ,
संदेश दिया साखी पढ़ कर ,
तीखा बोला पाखंडों पर ।।
हम समझ न पाए कबीरा को,
निराकार जो उनका अपना ,
दर्शन उनका जीवन मेरा ,
तत्व बताया बड़े ज्ञान का ।।
रहस्यवाद पर कबीरा का ,
अनुभव उनका अपना था,
हम पाखंडी बने रहे , पर,
पढ़ा नहीं कभी-कबीरा को ।।
ज्ञानी ध्यानी को जाने पर ,
नींद हमारी खुलती है ,
हो जाती जब देर बहुत ,
हम उस पर पछताते हैं ।।
कह गए कबीर सुनो साधु,
दुनिया नहीं ठौर ठिकाना है,
बार-बार कहता आया हूं ,
जीवन पानी का बुलबुला ।।
वसुंधरा हरी भरी,
मरुधरा कैसे बनी,?
प्रयास तेरे पास है ,
चुनौती स्वीकार कर ।।
कबीर और रैदास को ,
एक साथ झांक तू ,
ज्ञान का भंडार जो,
परवाह किसको आज है ?
दिशा और दशा से ,
बहुत दूर आज हैं ,
साफ-साफ दिख रहा,
अंधकार मेरे पास है ।।
रोया कबीरा समझ न पाए,
गंगा तट पर क्यों पछताए ,
उनका दर्शन उनका जीवन,
आओ मिलकर हम अपनाएं। ।।
गुरु भाई दोनों मिले ,
संत कबीर रैदास ,
मां गंगा प्रसन्न हुई,
अपने तट पर आप। ।।
गूंज उठा गंगा तट एक पल,
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी ,
भक्तों में थी होड़ लगी ,
भजन करे रैदासा ,,,,,
"
" प्रभु जी तुम चंदन हम पानी"
मौलिक रचना