aatishbaaji jaruri nahi by Jitendra Kabir
November 07, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
आतिशबाजी जरूरी नहीं
दीवाली - दशहरे जैसे त्यौहारों में
धूम - धड़ाके को जरूरी मानना हो
या फिर नववर्ष के आगमन का
स्वागत करना हो
आतिशबाजी के शोर में दबाकर,
शादी एवं अन्य सामाजिक समारोहों में भी
पटाखे चलाने की परंपरा निभाकर,
देश के प्रमुख शहरों में
वायु व ध्वनि प्रदूषण की समस्या को
आने वाले दिनों के लिए
ज्यादा विकराल बनाकर,
दो - चार हजार रुपयों के पटाखे फोड़
खुद को बड़े शूरवीर कहलाकर,
मानसिक दिवालियेपन के शिकार जो लोग
दिखाना चाहते हैं
पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति की शान,
उनसे कहना चाहता हूं मैं सिर्फ इतना
कि बारूद की गंध मिली हवाएं
नहीं रहीं हैं कभी किसी महान मुल्क
और संस्कृति की पहचान,
कानफोड़ू धमाकों में खुशियां ढूंढना
हिंसक प्रवृतियों का है काम,
इसलिए आतिशबाजी के विरोध को
अपनी संस्कृति व धर्म पर हमला बताकर
शांति, दया, समझदारी एवं
उच्च आध्यात्मिक ज्ञान की संस्कृति को
अपने तुच्छ कुतर्कों से न करो यूं बदनाम।
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