Barood par masoom by Anita sharma
बारूद पर मासूम
नियति की गति बड़ी निराली
देख अचरच होता है।
खतरे का न इल्म इन्हें तो
बारूद पर जीवन जीते हैं।
ऐ मासूमियत की उम्र !
क्यों बारूद के ढेर में?
खतरो का न भान इन्हें
रोटी- भूख सवाल बड़ा।
खेलने की उम्र में ये
खतरों से खेल रहे हैं।
किसी के मनोरंजन के लिए
जीवन दाव पर लगा रहे।
विषमताओं के इस संसार में
लाचारी बेमोल बिक रही।
मासूमियत बारूद के ढेर में
देखो कैसे सुलग रही।
बाल-मजदूरी के कानून की
धज्जियां देखो उड़ रही।
नेताओं की बात खोखली
मासूमो की जान जोखिम में ।
कब भारतीयता जागेगी?
कब होगा कानून सुदृढ़ ?
कब तक बारूदी खेल चलेगा?
कब मानवता स्वतंत्र विचारो की होगी?