chunauti se km nahi by Jitendra Kabir
चुनौती से कम नहीं
वक्त बीतता जाता है
जैसे-जैसे
कुंद पड़ती जाती है
दांपत्य में धार नयेपन की,
जिन नजरों के मिलने से
दिल धड़क जाते थे दोनों के
जोरों से
वो 'नार्मल' हो जाती हैं।
जिनकी नाराजगी के डर से
सिहरन दौड़ जाती थी जिस्म में
बहुत बार
वो 'इग्नोर' हो जाती हैं।
जिन आंखों में आंसू आने से
दिल बैठ जाता था फ़िक्र से
होकर परेशान
वो 'रूटीन' हो जाते हैं।
घर-परिवार की जिम्मेदारी
निभाते हुए दांपत्य में
'चार्म' बनाए रखना भी
किसी चुनौती से कम नहीं।