Jhutha bhram by Jitendra Kabir
November 07, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
झूठा भ्रम
रोक नहीं पाते जब तुम
दुनिया के सब मजलूमों
पर होने वाले
ज़ुल्म-ओ-सितम
तो फिर तुम्हारे 'दुखहर्ता' होने का
झूठा भ्रम क्यों पाल लूं मैं?
जब फलने-फूलने देते हो
अपनी आंखों के सामने
दुनिया में तुम
अनेकानेक अनाचारों को,
तो फिर तुम्हारे 'दिव्यद्रष्टा' होने का
झूठा भ्रम क्यों पाल लूं मैं?
पूर्वजन्मों के फल के नाम
पर कभी और कभी
भाग्य के नाम पर मजलूमों
का शोषण करने वालों पर
अगर तेरा कोई बस नहीं,
तो फिर तेरे 'सर्वशक्तिमान' होने का
झूठा भ्रम क्यों पाल लूं मैं?
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