चुनाव का मौसम
लो चुनाव का समय आया
छीटा कशी व्यंग्य का दौर।
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सबको अपनी कुर्सी का मोह
चुनाव प्रचार के नये नये तरीके।
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प्रलोभनो के आकर्षक रूप
सज रहा तम्बू सज रही गाड़ी।
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होंगें सवार, पावर का है कमाल
जनता को गुमराह करेगें।
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चिकनी चुपड़ी बातों में लपेटकर
जनता की आंखो में धूल झोंकेगे।
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वादों की लड़लड़ी लगाकर
जनता को डुबकी अब देगें।
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देखो आया चुनावों का दौर
नेताओं की बातों का दौर।
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कितने वादे,कितने नारे
सबकी सब है खोखले पिटारे।
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प्रचार-प्रसार के रंग निराले
टीवी चैनलों पर धूम मचाते।
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सबकी की बखिया खूब उधेड़ते
हरेक पार्टी दूसरे पर कीचड़ उछालती।
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नेताओं की सभाओं का दौर
गरीब जनता की फिक्र का दौर।
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सब पार्टी के लोलुप हैं
धन-जन-उपहारों का वादा ।
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एक दूसरे की पोल खोलते
कितना भाषणबाजी करते।
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काश जनता को ये समझते?
अब जागरूक है जनता ।
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