जीवनपथ - भारती चौधरी

 जीवनपथ

जीवनपथ - भारती चौधरी


उठा तर्जनी परप्राणी पर

छिपा निज दुर्गुण किस पंथ रखा

तनिक विचार किया स्वयं पर

निज दायित्व किस स्कंध रखा


 मन मार लिया हालातों से

या अपने निरुत्साहित भावों से

गिनता रहा उमर कितनी बीतती गयी

जंग कौन सी जो तुझसे जीती गयी


जोड़ रहा सम्पत्ति अर्जित 

की कितनी तात ने

प्रश्न उठा निज पर भी

तूने किया क्या अर्जित अाप में


स्वपन अनोखे तू देख रहा

किन्तु श्रम तुझसे हो ना रहा

जर्जर सा गृह भी तू ना बना सका

इक सुख भी निज मां को तू ना दिला  सका


ये कैसा जीवन जीता आया

कुल का यश तूने तनिक न बढाया

नाम तेरा ना अब तक कोई जाना

कौन तुझे तेरे गुणों से पहचाना


 वक्त कहां तक बीता है

उम्र कहां अर्धशती पार गई

कर धारण श्रम का कमान

चलाता जा प्रयास के तीर कई


माना विलंब बहुत हुआ

तेरा अवलंब ना कोई हुआ

किन्तु कर क्या तेरे अशक्त हैं

तेरा स्वाभिमान तुझसे कहां विभक्त हैं


तू बता रहा जिनकी त्रुटियां

वह तेरे हेतु निरर्थक है

टटोल तनिक निज अंतर को

जीवन पथ में क्या सार्थक है


भारती चौधरी (Bharti Chaudhary)
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश

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